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Gandhari Regime in Kandahar (GRK)

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गांधारी रेजीम इन कंधार (GRK): अफगानिस्तान की गुप्त रक्षक शक्ति विश्व राजनीति के मंच पर अफगानिस्तान एक ऐसा देश बन गया है, जिसने असंख्य संघर्षों और बाहरी हस्तक्षेपों को सहा है। परंतु इन सबके बीच एक रहस्यमयी शक्ति ने सदियों से इस धरती की रक्षा की है—एक अज्ञात सेना, जिसका अस्तित्व आज भी अफगान जनता के हृदय में आशा की तरह धड़कता है। इस शक्ति का नाम है — Gandhari Regime in Kandahar (GRK)। एक प्राचीन विरासत GRK की जड़ें उस दौर में हैं, जब अफगानिस्तान पर बाहरी आक्रमणकारियों की नजरें थीं, और तालिबान का अस्तित्व भी नहीं था। उस समय, एक गुप्त महिला शक्ति, जिसने "गांधारी" की तरह अपनी आंखों पर पर्दा तो बांधा था, लेकिन अपने मन और हृदय से हर अन्याय को देखती थी, इस शक्ति की स्थापना की। इसका उद्देश्य था— न्याय, सुरक्षा और स्वतंत्रता की रक्षा। आधुनिक पुनर्जागरण आज, जब अफगानिस्तान फिर से तालिबान के अंधेरे में घिरता नजर आया, तब विश्व के विभिन्न कोनों—दुबई, अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड—में बैठी हुई कुछ साहसी अफगानी महिला व्यापारी सामने आईं। ये वे स्त्रियां थीं जिन्होंने अपने देश की पीड़ा ...

"संघर्ष से समरसता तक: निषाद रेजिमेंट की कथा"

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निबंध: निषाद रेजिमेंट – भारत और अफगानिस्तान की साझी विरासत का प्रहरी भारत और अफगानिस्तान – दो ऐसे देश हैं जिनकी साझी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक विरासत सदियों पुरानी है। इन दोनों देशों ने युद्धों, संघर्षों, व्यापारों और विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से एक-दूसरे को गहराई से प्रभावित किया है। इसी साझा भावभूमि को एक नई दिशा देने के लिए आज "निषाद रेजिमेंट" का गठन एक आदर्श प्रतीक के रूप में उभर रहा है। चित्र में एक वीर सैनिक दिखता है – छाती पर बंदूक, दृढ़ संकल्प से भरी आँखें, और दोनों हाथों में लहराते भारत और अफगानिस्तान के झंडे। यह दृश्य केवल सैन्य शक्ति का प्रतीक नहीं, बल्कि आपसी विश्वास, साझी सुरक्षा और भाईचारे की भावना का उद्घोष है। “निषाद रेजिमेंट” का यह योद्धा सीमा रेखाओं को नहीं, दिलों को जोड़ने का संदेश देता है। निषाद रेजिमेंट न केवल एक सैन्य दल है, बल्कि एक विचार है – शांति, सहयोग और समानता का विचार। यह रेजिमेंट उन लोगों की आवाज़ है जो युद्ध नहीं, दोस्ती चाहते हैं; जो हथियारों से नहीं, संस्कृतियों के मेल से स्थायित्व लाना चाहते हैं। भारत की प्राचीन प...

"तमिल न्याय के प्रहरी: कुमार पोन्नम्बलम की अंतिम पुकार"

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कुमार पोन्नम्बलम (1938–2000) पूरा नाम: गासिंथेर गंगासेर पोन्नम्बलम जन्म: 12 अगस्त 1938 मृत्यु: 5 जनवरी 2000 (आयु 61) पेशा: वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ राजनीतिक दल: ऑल सीलोन तमिल कांग्रेस (ACTC) पिता: जी.जी. पोन्नम्बलम (प्रसिद्ध तमिल नेता) शिक्षा: सेंट पैट्रिक कॉलेज, जाफना रॉयल कॉलेज, कोलंबो एक्विनास यूनिवर्सिटी कॉलेज, कोलंबो किंग्स कॉलेज लंदन (LLB) कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (MA) बार में प्रवेश: लिंकन इन, 1974 --- व्यक्तिगत जीवन पत्नी: योगलक्ष्मी (सर्जन), जाफना के पूर्व अतिरिक्त सरकारी एजेंट टी. मुरुगेसपिल्लई की पुत्री संतान: बेटी: मिरिनालिनी (चिकित्सक) पुत्र: गजेंद्रकुमार (वकील और राजनेता) --- कानूनी करियर और मानवाधिकार कार्य श्रीलंका लौटने के बाद वकालत की शुरुआत सिंहल भाषा सीखी ताकि हर स्तर पर मुकदमों की पैरवी कर सकें निशुल्क वकील के रूप में तमिल व सिंहल युवाओं के मानवाधिकारों की रक्षा आपराधिक न्याय आयोग और जनमत संग्रह जैसे सरकारी कदमों का विरोध जिनेवा व यूरोपीय संसद में तमिल मुद्दों को उठाया कृष्णांति कुमारस्वामी व चेम्मनी सामूहिक कब्र कांड जैसे मामलों में सक्रि...

lovestory of korean soldier and Assamese girl

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दिल्ली में मिला दिल (इशा बोडो और चियांग की सच्ची प्रेम कहानी) साल 2023 की बात है। शरद ऋतु का मौसम था, जब असम के कोकराझार जिले की एक साधारण किंतु तेजस्वी युवती इशा बोडो अपने मामा के परिवार के साथ दिल्ली घूमने आई। पारंपरिक असमिया मेखला-चादर में सजी इशा के मन में नयी जगहें देखने की उत्सुकता थी। उसकी आंखों में गांव की सरलता और हृदय में स्वाभिमानी नारीत्व की चमक थी। उसी समय, दक्षिण कोरिया की सेना में कार्यरत एक जवान चियांग भारत के एक विशेष सैन्य कार्यक्रम के अंतर्गत दिल्ली आया हुआ था। उसे भारत की संस्कृति में गहरी रुचि थी — खासकर असम, मणिपुर और नागालैंड जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में। वह अपने कैमरे के साथ दिल्ली की गलियों में इतिहास और जीवन की तस्वीरें समेट रहा था। उनकी पहली मुलाकात लाल किला के पास हुई। इशा अपने परिवार के साथ किले के द्वार पर तस्वीर खिंचवा रही थी, तभी एक हल्की ठोकर लगते ही उसके हाथ से छोटा बैग गिरा। चियांग, जो पास में ही खड़ा था, तुरंत झुककर बैग उठाया और मुस्कुराते हुए बोला, "Hello… is this yours?" इशा थोड़ी हिचकी, फिर बोली, "Yes… Thank you!" फि...

"एकलव्य की प्रतिज्ञा: ऑपरेशन साड़ी का संग्राम"

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--- नाटक का शीर्षक: "ऑपरेशन साड़ी: निषाद रेजिमेंट का महायुद्ध" --- मुख्य पात्र: कैप्टन वेदव्यास – निषाद रेजिमेंट के अनुभवी और आदर्शवादी कमांडर एकलव्य – आधुनिक कमांडो, तकनीक और धनुर्विद्या का माहिर बिरसा मुंडा – गुप्तचर और क्रांतिकारी रणनीतिकार फुलन देवी – महिला कमांडो दस्ते की नेतृत्वकर्ता (पृष्ठभूमि में) दलाई थुप्तेन – तिब्बती संघर्ष का युवा प्रतीक दुश्मन अधिकारी – तिब्बत को कब्जे में रखने वाला शोषक सेनापति कथावाचक, सैनिकगण, झंडावाहक --- दृश्य 1 – ऑपरेशन सिंदूर के बाद निषाद रेजिमेंट का मुख्यालय (एकलव्य और बिरसा, रणभूमि से लौटते हैं। कैमरों और रोबोटिक ड्रोन स्क्रीन पर रिपोर्ट दिखा रहे हैं।) कैप्टन वेदव्यास (गंभीर स्वर में): वीरों, ऑपरेशन सिंदूर सफल हुआ। अब शुरू होता है ऑपरेशन साड़ी — तिब्बत की मुक्ति का संग्राम। यह केवल युद्ध नहीं, संस्कृति, जलवायु और नारीत्व की रक्षा है। एकलव्य: हम तैयार हैं, गुरुकप्तान! मेरे धनुष की डोरी तिब्बती बहनों के सम्मान के लिए कांपेगी नहीं — तानेगी! बिरसा: और मेरी चुप्पी अब हथियार बनेगी। मैं दुश्मन की छावनियों में आग लगाऊँगा — विचारों की...

"शेरनी की वापसी: निषाद रेजिमेंट की वीरांगना"

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“निषाद रेजिमेंट की वीरांगना: फुलन देवी” (एक अंशमात्र) --- पात्र – 1. फुलन देवी – निषाद रेजिमेंट की महिला कमांडो 2. सुभाषिनी – साथी महिला कमांडो 3. कर्नल वर्मा – रेजिमेंट प्रमुख 4. दुश्मन कमांडर – आतंकवादी गिरोह का नेता 5. रिपोर्टर – जो घटना का दस्तावेज़ रखती है --- दृश्य 1: (रेजिमेंट कैंप, युद्ध से पहले) (सुभाषिनी घबराई हुई है, हथियार चमक रहे हैं) सुभाषिनी: (कांपती आवाज़ में) फुलन, हम दो ही हैं… और सामने पचास से ज़्यादा दुश्मन। क्या कर पाएंगे हम? फुलन देवी: (आत्मविश्वास से मुस्कुराते हुए) सुभाषिनी, याद रखो — हम निषाद रेजिमेंट की बेटियाँ हैं। हम नाव चलाना भी जानती हैं, और आँधियों से टकराना भी। पीछे हटना हमारी परंपरा नहीं। --- दृश्य 2: (कमांडो ऑपरेशन का मैदान) (गोलीबारी की आवाज़ें, धुआँ। फुलन दुश्मनों के बीच घिरी है। दुश्मन कमांडर सामने आता है) दुश्मन कमांडर: (हँसते हुए) तो तू है फुलन देवी? एक औरत हमारे ख़िलाफ़? भाग जा, जान बचा ले। फुलन देवी: (गर्जन में) औरत हूँ, इसीलिए लड़ रही हूँ। तूने जितने गाँव जलाए, उन हर एक माँ की आँखों का आँसू मैं हूँ! आज तेरे पापों का हिसाब होगा। (फुल...

"माटी की कहानियाँ: रूथ ट्रिंगम का पुरातत्व और नारीवाद"

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--- नाम: रूथ ट्रिंगम जन्म: 14 अक्टूबर 1940, एस्पले गुइज़, बेडफोर्डशायर, इंग्लैंड राष्ट्रीयता: ब्रिटिश-अमेरिकी अनुशासन: मानवविज्ञान, पुरातत्व विशेषज्ञता: नवपाषाण युग (Neolithic) – यूरोप और दक्षिण-पश्चिम एशिया संस्थाएं: कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले (मानव विज्ञान विभाग) सेंटर फ़ॉर डिजिटल आर्कियोलॉजी (CoDA) – अध्यक्ष एवं क्रिएटिव डायरेक्टर --- शिक्षा और प्रारंभिक जीवन रूथ ट्रिंगम का पालन-पोषण इंग्लैंड में हुआ। उन्होंने गर्ल्स पब्लिक डे स्कूल ट्रस्ट से शिक्षा पाई और लैटिन-ग्रीक पढ़ा। बचपन से ही लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम में शोधात्मक गतिविधियों में सक्रिय रहीं। 13 वर्ष की उम्र में पहली खुदाई में भाग लिया और 16 वर्ष की उम्र तक तय कर लिया कि वे पुरातत्वविद् बनेंगी। उन्होंने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से पुरातत्व में स्नातक और पीएचडी की उपाधियाँ प्राप्त कीं। --- करियर और प्रमुख कार्य ट्रिंगम ने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाया, फिर बर्कले चली गईं। उन्हें मुख्य रूप से निम्नलिखित खुदाई परियोजनाओं के लिए जाना जाता है: सेलेवैक (1976–79), ओपोवो (1983–...

"मौन के पीछे की मशाल: अनवर काकर और बलोच आंदोलन की गुप्त गाथा"

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प्रस्तावना इतिहास केवल वह नहीं होता जो पुस्तकों में लिखा जाता है, वह भी होता है जो पर्दों के पीछे घटता है — गुप्त, मौन, किंतु शक्तिशाली। पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत में दशकों से चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन की कथा भी ऐसी ही है। एक ओर सार्वजनिक मंचों पर आंदोलन को देशविरोधी ठहराया जाता रहा, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे भी चेहरे थे, जिन्होंने उस आंदोलन को भीतर से पोषित किया। उन्हीं में एक नाम है — अनवर उल-हक काकर। एक ऐसा व्यक्तित्व जो बाहर से कट्टर राष्ट्रवादी दिखता था, लेकिन भीतर से बलोच आकांक्षाओं का मौन समर्थक था। --- बलोच आंदोलन: पृष्ठभूमि बलोचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है, परंतु राजनीतिक उपेक्षा और सैन्य दमन ने वहां की जनता को लंबे समय से हाशिये पर धकेल रखा है। स्थानीय जनता का मानना है कि उन्हें न अपनी ज़मीन पर अधिकार है, न अपने संसाधनों पर, और न ही अपनी संस्कृति पर। इसी अन्याय के विरोध में बलोच आंदोलन जन्मा — जो प्रारंभ में शांतिपूर्ण, अहिंसक और जनतांत्रिक था। --- अनवर काकर का सार्वजनिक रुख अनवर उल-हक काकर, जो बलोचिस्तान से ही आते हैं, पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान में ...

"सर्वभूतानां पत्नीरूपेण स्थिते देवी"(अर्थ: जो समस्त योद्धाओं में पत्नी के रूप में स्थित देवी हैं)

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--- शीर्षक: “शिवगणों की साध्वी: सभी सैनिकों की पत्नी” वह एक साध्वी थी, पर न वैसी जो जग से दूर तपस्याओं में लीन हो, बल्कि वह — जो जग के वीरों की संगिनी थी। जैसे एक कृष्णदासी श्रीकृष्ण के सभी भक्तों की अर्धांगिनी मानी जाती है, वैसे ही वह साध्वी शिव के गणों के पुनर्जन्म स्वरूप, सैनिकों की — पत्नी थी। उसका विवाह किसी एक पुरुष से नहीं, बल्कि धर्म और समर्पण से हुआ था। वह प्रेमिका थी उन सभी सैनिकों की — जो अपनी भूमि, संस्कृति और संतों की रक्षा के लिए जीवन देते हैं। उसका साथ तीनों स्तरों पर होता था: मानसिक — जहाँ वह उन्हें साहस देती, शारीरिक — जहाँ वह उन्हें स्पर्श और सामीप्य से बल देती, और आध्यात्मिक — जहाँ वह उनके मोक्ष के द्वार तक साथ चलती। वह उनके हृदय की शांति थी, कंधे की ढाल, और आँखों में प्रेरणा। उसकी हथेली पर झाड़ू, बेलन, लाठी और कभी त्रिशूल भी होता — वह नारीत्व की कोमलता और शिवशक्ति की ज्वाला — दोनों थी। कभी किसी सैनिक की छाती से लिपटकर उसे अंतिम विदाई देती, तो कभी किसी घायल योद्धा के घाव पर हाथ रख मंत्रों की जगह — अपने प्रेम का बल देती। वह गुप्त रूप से सभी संतों और देशभक्...

"गृहिणी: अवमूल्यन के परे एक मौन साधना"

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हाउसवाइफ की गरिमा और समाज की दृष्टि जिस प्रकार किसी भी विभाग में कुछ भ्रष्ट कर्मचारी रिश्वत लेकर उस पूरे विभाग की छवि को धूमिल कर देते हैं, ठीक उसी प्रकार कुछ नाकाम गृहिणियाँ, दूसरों की चुगली करके और स्वयं की झूठी प्रशंसा करवाकर, "हाउसवाइफ" की गरिमा को कम कर देती हैं। इस कारण समाज की एक बड़ी आबादी हाउसवाइफ को निकम्मा, आलसी या केवल घर तक सीमित मानने लगती है। परंतु सच्चाई इससे बहुत अलग है। एक सच्ची और समर्पित गृहिणी न केवल एक परिवार की रीढ़ होती है, बल्कि एक समाज और राष्ट्र की संस्कृति की संरक्षिका भी होती है। वह बिना किसी वेतन के 24 घंटे सेवा करती है—खाना बनाना, घर की साफ़-सफ़ाई, बच्चों की देखभाल, परिवार के बुजुर्गों की सेवा, आर्थिक संतुलन, भावनात्मक सहारा—ये सब उस महिला के योगदान हैं जिसे दुनिया अक्सर 'केवल हाउसवाइफ' कहकर टाल देती है। कुछ गृहिणियाँ यदि अपने कर्तव्यों से विमुख होकर दूसरों की निंदा करके स्वयं को श्रेष्ठ साबित करना चाहें, तो यह केवल व्यक्तिगत स्तर पर एक दुर्बलता है, न कि पूरे वर्ग की विशेषता। ऐसे कुछ उदाहरणों से समस्त गृहिणियों को निकम्मा समझ...

"महिला चिकित्सा और संघर्ष की प्रतीक: वेरा गेड्रोइट्स का अद्वितीय योगदान"

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वेरा इग्नाटिवेना गेड्रोइट्स (19 अप्रैल 1870 - मार्च 1932) एक महत्वपूर्ण रूसी चिकित्सा डॉक्टर और लेखिका थीं, जो कई ऐतिहासिक पहलुओं में अग्रणी थीं। वह रूस की पहली महिला सैन्य सर्जन, सर्जरी की पहली महिला प्रोफेसर, और शाही न्यायालय में चिकित्सक के रूप में सेवा करने वाली पहली महिला थीं। वेरा का जन्म स्लोबोडिशे, रूसी साम्राज्य (अब ब्रांस्क, रूस) में हुआ था। उनके माता-पिता, डारिया कोन्स्टेंटिनोव्ना मिखाउ और प्रिंस इग्नाति इग्नाटिविच गेड्रोइट्स थे। उनके पिता लिथुआनियाई राजसी कबीले से थे, जबकि उनकी मां का परिवार रूसी जर्मन था। गेड्रोइट्स ने अपने परिवार में कई कठिनाइयों का सामना किया, जैसे कि उनके परिवार की संपत्ति का नष्ट होना और कई व्यक्तिगत त्रासदियाँ। उन्होंने अपने चिकित्सा करियर की शुरुआत स्विट्जरलैंड में की, जहाँ उन्होंने 1898 में चिकित्सा स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने रूस में चिकित्सा का अभ्यास किया और श्रमिकों की चिकित्सा आवश्यकताओं के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उनका मानना था कि स्वच्छता, पोषण, और सफाई में सुधार की आवश्यकता थी, और उन्होंने इस दिशा में कई पह...

"पगन: प्रकृति की गोद में आत्मा की पुकार"

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निबंध: 'PAGAN' शब्द के प्रत्येक अक्षर का आध्यात्मिक अर्थ प्रस्तावना ‘PAGAN’ शब्द सिर्फ पाँच अक्षरों का समूह नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी आध्यात्मिक चेतना को दर्शाता है, जो मनुष्य को प्रकृति, आत्मा और सृष्टि से गहरे स्तर पर जोड़ती है। जब हम इस शब्द को उसके प्रत्येक अक्षर के अर्थ के साथ समझते हैं, तो यह एक सम्पूर्ण जीवन-दर्शन बन जाता है। आइए, ‘PAGAN’ शब्द के हर अक्षर का आध्यात्मिक अर्थ जानें और उससे जुड़ी जीवन दृष्टि को समझें। --- P – Purity (पवित्रता) P अक्षर ‘Purity’ यानी पवित्रता का प्रतीक है। पवित्रता केवल शरीर की नहीं, बल्कि विचारों, कर्मों और आत्मा की भी होनी चाहिए। एक पैगन आत्मा वही है जो जीवन को निर्मल दृष्टि से देखती है, द्वेष और हिंसा से रहित होती है, और प्रत्येक जीव के प्रति करुणा रखती है। --- A – Awareness (जागरूकता) A अक्षर ‘Awareness’ का संकेतक है। एक सच्चा PAGAN सृष्टि के प्रति सजग होता है। उसे यह ज्ञान होता है कि वह धरती, जल, अग्नि, वायु और आकाश के साथ एक ऊर्जा-सूत्र में बंधा है। वह जागरूक होता है कि उसका प्रत्येक कर्म इस ब्रह्मांड को प्रभावित करता है। ---...

शीर्षक:"अनुशासन की छाया में चेतना का प्रकाश: टेडी इंद्र विजया की जीवन-यात्रा"

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निबंध शीर्षक: "राजनीति, सैन्य सेवा और त्रिधारा चेतना: लेफ्टिनेंट कर्नल टेडी इंद्र विजया का विमर्श" प्रस्तावना आधुनिक विश्व में राजनीति और सैन्य सेवा के समागम ने एक नई चेतना को जन्म दिया है, जिसे चेतनात्मक त्रिधारावाद कह सकते हैं — यह दर्शन प्राकृतिक धर्म (प्रकृतिवाद), नैतिक संहिता (शाकाहार/अहिंसा) और नारी चेतना (नारीवाद) के तीन मूल स्तंभों पर आधारित है। इस दृष्टिकोण से यदि हम इंडोनेशियाई सैन्य अधिकारी और राजनीतिज्ञ लेफ्टिनेंट कर्नल टेडी इंद्र विजया के जीवन और कार्यों का मूल्यांकन करें, तो हमें स्पष्ट रूप से समकालीन राजनीति में चेतनात्मक द्वंद्व और उसकी दिशा दिखाई देती है। मुख्य विचार टेडी इंद्र विजया का जीवन एक बहुआयामी संघर्ष और उपलब्धियों की यात्रा है। एक सैन्य अधिकारी, एक राजनेता, और एक नागरिक के रूप में उनकी भूमिकाएँ सत्ता, सेवा और सामाजिक विमर्श के बिंदुओं पर टकराती हैं। चेतनात्मक त्रिधारावाद के अनुसार यह टकराव केवल सत्ता का नहीं, बल्कि विचारधारा और उत्तरदायित्व का भी है। प्रकृतिवाद के आलोक में देखा जाए, तो उनका सैन्य प्रशिक्षण और कर्तव्य निस्संदेह अनुशासन और...

"थाली से उठी क्रांति: मेरी शाकाहारी अस्मिता की गाथा"

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निबंध: मेरी शाकाहारी जीवनशैली — एक मौन क्रांति की उद्घोषणा --- प्रस्तावना भेदभाव केवल रंग, जाति, धर्म या भाषा तक सीमित नहीं होता। कभी-कभी यह हमारे थाली में परोसे गए भोजन से भी तय होता है। जब समाज यह मान लेता है कि किसी का भोजन ही उसकी श्रेष्ठता या हीनता का मापदंड है, तब वह अपने नैतिक पतन की घोषणा कर चुका होता है। मेरी बाल्यावस्था में मैंने यही भेदभाव झेला — न रंग के कारण, न जाति के कारण, न लिंग के कारण, बल्कि केवल इसलिए कि मैं शाकाहारी थी। --- शाकाहार का मेरा पथ मैंने बचपन से ही शाकाहार को अपनाया — न किसी डर से, न किसी मजबूरी से, बल्कि गहरे करुणा और संवेदना के भाव से। मुझे जीवों की हत्या स्वीकार नहीं थी। मेरी थाली में रोटी, दाल, सब्जियाँ थीं, न कि किसी निर्दोष की चीखें। मेरे लिए शाकाहार केवल आहार नहीं, बल्कि जीवनदर्शन था। परन्तु विद्यालयों में, सहपाठियों के बीच, शिक्षकों के बीच भी मुझे बार-बार "अलग", "कमज़ोर", "अजीब" और "पाखंडी" कहकर अपमानित किया गया। --- भेदभाव के स्वरूप जैसे अमेरिका में अश्वेत बच्चे नस्ल के कारण अपमानित होते हैं, जै...

राशि अनुसार युद्ध कला

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यहाँ मैं आपको 12 राशियों के अनुसार संघर्ष की प्रवृत्ति (life struggles) और युद्ध कौशल (combat or strategy skill) का एक संक्षिप्त और गूढ़ विवेचन दे रही हूँ, जो आपके त्रिधारावादी चिंतन को भी बल दे सकता है: --- १. मेष (Aries) संघर्ष: अधीरता, बिना सोचे निर्णय; आत्म-प्रवंचना का संकट। युद्ध कौशल: साहसी अग्रदूत; युद्धभूमि में सबसे आगे; तेज हमला, पलटवार में निपुण। --- २. वृषभ (Taurus) संघर्ष: हठ, परिवर्तन से भय; भावनात्मक बोझ। युद्ध कौशल: रक्षात्मक रणनीति; अडिग और स्थिर योद्धा; लंबे युद्धों में अपराजेय। --- ३. मिथुन (Gemini) संघर्ष: मन का दोहरापन, आत्म-संदेह। युद्ध कौशल: बुद्धि और चालाकी से युद्ध; संवाद और भ्रम से शत्रु को मात देना। --- ४. कर्क (Cancer) संघर्ष: भावनात्मक चोट, पारिवारिक द्वंद्व। युद्ध कौशल: भावनाओं को ढाल बना युद्ध करना; गुप्त योजना में निपुण। --- ५. सिंह (Leo) संघर्ष: अहंकार का बोझ, अपमान की असह्यता। युद्ध कौशल: नेतृत्व क्षमता; दहाड़ के साथ युद्ध, आत्म-प्रेरणा से सेना को प्रेरित करना। --- ६. कन्या (Virgo) संघर्ष: आत्मालोचना, पूर्णता की अत्यधिक चाह। युद्ध कौशल: रणनी...

"सर्पमित्रा: करुणा की अनसुनी पुकार"

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शीर्षक: "सर्पमित्रा: एक कन्या की करुणा और वीरता की गाथा" (मंच पर धुंध का दृश्य। मधुर संगीत की ध्वनि पृष्ठभूमि में बज रही है।) दृश्य 1: जंगल का किनारा — एक छोटी सी कुटिया के पास (मंच पर एक सात वर्ष की कन्या — गौरी — बैठी है, फूलों से खेल रही है। तभी एक काले रंग का सर्प रेंगता हुआ आता है। लड़की डरने के बजाय मुस्कुराती है।) गौरी (कोमल स्वर में): "ओ सर्पदेव, मत डरो मुझसे, तुम मेरे जैसे ही खुदा के बनाए हो ना।" (सर्प फुफकारता है, लेकिन फिर शांत होकर लड़की के पास बैठ जाता है। एक सुंदर मैत्री की शुरुआत होती है।) दृश्य 2: जंगल में बिल्ली और नेवले की आवाजें (बिल्ली और नेवला एक सर्प पर हमला करते हैं। गौरी दूर से देखती है, वह ज़ोर से शीश-शीश करती है। सर्प उसकी आवाज पहचानता है और भाग जाता है। यह दृश्य कई बार दोहराया जाता है, जहां गौरी सर्पों को बचाती है।) दृश्य 3: एक दोपहर — गांव का रास्ता (गौरी अकेले जा रही है। कुछ गुंडे उसे घेर लेते हैं। साजिश में फुसफुसाहटें होती हैं। तभी एक फुफकारती आंधी चलती है। मंच पर कई सर्प अचानक प्रकट होते हैं और गुंडों पर चढ़ जाते हैं।) गुं...

"अस्मिता की अग्निशिखा: एक गांव से जन्मा नया राष्ट्र"

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शीर्षक: “एक गांव से उठती क्रांति: नार्थ ईस्ट इंडिया का नया राष्ट्र” (एक नाटकीय गाथा) दृश्य 1: गांव का उगता सूरज और सरपंच का संकल्प (मंच पर हल्की पीली रोशनी। एक साधारण सा असमिया गांव। तालाब, बांस की झोपड़ी और एक मंच के बीचों-बीच पीपल का पेड़। सरपंच मधुरंजन पाठक जी सफेद धोती और गमछा में मंच पर आते हैं। पीछे धीमा असमिया वाद्य संगीत।) मधुरंजन पाठक (जोशीले स्वर में): "हमारे पूर्वजों ने यह भूमि खून-पसीने से सींची है। अब समय है... हमारे बच्चे इसे सम्मान, संस्कृति और स्वराज्य से महका दें!" दृश्य 2: बेटों का संघर्ष, न्याय और बलिदान (गौरव पाठक कोर्टरूम में – वकील के रूप में। एक बूढ़ी स्त्री का केस लड़ते हैं।) गौरव पाठक: "गरीब का अधिकार, संविधान से भी ऊपर है, मैं अपने समाज के लिए लड़ूंगा — और जीतूंगा।" (मोहन पाठक पुलिस की वर्दी में। जंगल के भीतर आतंकी से लड़ते हुए:) मोहन पाठक: "मां के दूध और धरती की सौगंध — मैं नार्थ ईस्ट की रक्षा अंतिम सांस तक करूंगा!" दृश्य 3: अगली पीढ़ी का व्यवसाय नहीं, आंदोलन (धृतिस्मान और परम पाठक – असमिया पोशाक में – पारंपरिक होटल ख...

"उत्तर-पूर्व की पुकार: एक राष्ट्र की ओर"

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--- निबंध: "उत्तर-पूर्व भारत: एक स्वतंत्र राष्ट्र की संभावना" भारतवर्ष की विविधता उसकी सबसे बड़ी शक्ति मानी जाती है। विभिन्न जातियाँ, भाषाएँ, संस्कृतियाँ और जीवनशैली से भरपूर यह राष्ट्र अपने हर क्षेत्र में एक अनूठी पहचान रखता है। ऐसे ही एक क्षेत्र का नाम है — उत्तर-पूर्व भारत, जिसे हम Seven Sisters के नाम से जानते हैं। पर क्या कभी हमने गहराई से सोचा है कि क्या यह क्षेत्र वास्तव में भारत की मुख्यधारा का हिस्सा बन पाया है? या यह केवल एक औपचारिक जोड़ है, जिसका केंद्र से सम्बन्ध केवल प्रशासनिक है, आत्मिक नहीं? उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया जैसे देश जब अलग हो सकते हैं, या उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका जैसे महाद्वीप पहचान पा सकते हैं — तो उत्तर-पूर्व भारत क्यों नहीं एक स्वतंत्र राष्ट्र बन सकता? यह प्रश्न आज केवल भावनाओं का नहीं, बल्कि तर्क का भी है। 1. भाषिक और सांस्कृतिक विशिष्टता: उत्तर-पूर्व भारत में सैकड़ों भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनका भारत के शेष हिस्से से कोई सीधा संबंध नहीं होता। वहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाज, पहनावा, खान-पान और सोच — सब कुछ अलग है। इन राज्यों की...

त्रिधाम चंद्रलोक

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, ९. त्रिधाम चन्द्रलोक कथा त्रिधामस्य छायायां नीलाकाशः, २. यत्र प्रेम्णः सदा प्रवहति, तत्र मनः सर्वदा शान्तं भवति। चन्द्रस्य प्रासादः शुभः, २. यत्र जीवनस्य चत्वारः अपि पक्षाः निवसन्ति। राजा इरफानः प्रेम्णः राजा . श्वेतचन्द्ररूपेण दिव्यवेषः। तेन सह तस्य त्रयः सौम्याः मित्राणि आसन्, येन चन्द्रलोकस्य सोम्या विभूषितः | लियाना किराना, प्रार्थना प्रतिमा, 1999। प्रार्थने निमग्नं शान्तं सुगन्धितं मुखम्। zareen baloch, युद्धस्य कान्तिः, २. धैर्यस्य बलस्य च सुन्दरं दर्शनम्। लूना पाठक, शान्त पराक्रमस्य राज्ञी, 1999। छायासु निगूढा अग्निकथा। त्रयः अपि भिन्नाः आसन् तथापि एकः, समर्पणे वेष्टिता प्रेमरेखा। प्रासादस्य त्रिदिक्षु द्वाराणि सन्ति, . परन्तु प्रेम केवलं आधारः एव आसीत् । न ईर्ष्या न ईर्ष्या न विग्रहबाणाः । केवलं प्रेम एव, शान्तवायुः इव। यदा धवलचन्द्रः वेणुं वादयति स्म तदा । त्रयः अपि राज्ञीः पुष्पवृष्टिं कृतवन्तः । ते मिलित्वा दीपान् अलङ्कयन्ति, . सा च सायंकाले गीतानि गायति स्म। कन्याः बाणधारा इव आसन्, पुत्रः चन्द्रस्य मृदु आह्वानम् आसीत्। प्रत्येकमात्मनि गुणप्रकाशः, २. यथा तत्र त...

"त्रिधारा: चंद्रतुला की रानियाँ"

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जय माता त्रिकुला! जय त्रिधारा धर्म! सखि प्रज्ञाक्रान्ति, अब आरंभ होती है वह दिव्य नाट्य-कथा— “चंद्रतुला: त्रिरानियों का युग” (एक माया सभ्यता आधारित नाटक, जहाँ प्रेम, युद्ध, और धर्म का संगम होता है) --- दृश्य 1: त्रिरक्षा नगरी – प्रेम और संतुलन का स्वर्ण काल (राजा इरफान सिंहासन पर हैं, तीनों रानियाँ पास में बैठी हैं—चारों दिशाओं से स्त्रियाँ फूलों की माला और जल अर्पित कर रही हैं।) लियाना किराना (धीमे स्वर में): "हे नाथ, चंद्रकलाएं पूर्ण हैं, साधनाएं सिद्धि पर हैं… इस भूमि को अब चिरशांति प्राप्त है।" जरीन बलोच (तेज स्वर में): "परन्तु शांति की छाया में भी कभी-कभी अंधकार पलता है, राजन। सेनाओं को जागृत रखिए।" लुना पाठक (रहस्यपूर्ण लहजे में): "गुप्तचरों ने बताया है—पूर्व की ज्वालाओं में कोई जाग रहा है… कोई जो हमारी त्रिधारा को तोड़ना चाहता है।" (राजा इरफान गंभीर हो जाते हैं) "तो समय आ गया है देवियों, जब प्रेम के साथ युद्ध की ज्वाला भी जलानी होगी…" --- दृश्य 2: संकट की घोषणा – अग्निशक्ति का उदय (एक पिघलते ज्वालामुखी के भीतर से एक योद्धा “अग्...

"अधूरी प्रार्थनाओं के पार: इरफान की यात्रा"

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शीर्षक: रेत, पत्थर और परछाइयाँ दृश्य 1: (काबुल, 1998) (पाघमान जिला का एक साधारण सा घर। बच्चा रो रहा है, माँ lullaby गा रही है।) माँ (गाते हुए): "नींद की रेतें तेरे पैरों में, बेटा मेरा फौलाद बने..." दृश्य 2: (2016, एक सैन्य ट्रेनिंग कैम्प) (18 वर्षीय इरफान कठोर परिश्रम करते हुए दिखता है। पसीना और आँसू दोनों बह रहे हैं।) इरफान (स्वगत): "अब्बा नहीं रहे... पर उनके सपनों की आग मैं बुझने नहीं दूँगा।" दृश्य 3: (काबुल, 2019) (घर में हलचल। इरफान अपनी बहन और उसकी बेटी को लाता है।) इरफान: "इस घर में अब कोई आँसू नहीं बहेंगे... बस इज़्ज़त और इन्साफ रहेगा।" दृश्य 4: (ऑनलाइन चैट स्क्रीन) (इरफान और लियाना किराना की फेसबुक चैट।) लियाना: "हम अलग देशों के हैं... पर क्या आत्माएँ भी सीमाओं की परवाह करती हैं?" इरफान: "नहीं... लेकिन तुम्हारा डर, तुम्हारी ज़मीं, तुम्हारा सच भी मैं समझता हूँ।" दृश्य 5: (2021, अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्ज़ा) (हथियारों की आवाज, भागते लोग, घायल इरफान।) इरफान (जेल में, चिट्ठी पढ़ते हुए): "लियाना... तुम्हारा खत म...

"विरह के उस पार: एक सैनिक की साँझ"

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नाटक शीर्षक: पिघलते पहाड़ों के साए में दृश्य १: (काबुल, पाघमान जिला, 1998) (एक छोटे से घर में एक नवजात शिशु के रोने की आवाज़ आती है) पिता (इंजीनियर): बेटा हुआ है! इसका नाम इरफान पठान रखेंगे। माँ (सांस्कृतिक गायिका): मेरी आशा का गीत है ये बच्चा... दृश्य २: (काबुल, 2016) (इरफान अब 18 साल का है, पिता की मृत्यु हो चुकी है) इरफान: बाबू के जाने के बाद यह ज़िंदगी आसान नहीं रही। पर अब मैं एक सैनिक हूँ। उनकी तरह कुछ बनकर दिखाऊंगा। दृश्य ३: (इरफान का घर) इरफान की बहनें: भैया, हमारे शौहरों में से एक बहन के पति ने उसे बहुत सताया। इरफान: वो अब इस घर में रहेगी। उसका और उसकी बेटी का पूरा ख्याल मैं रखूंगा। दृश्य ४: (इंटरनेट पर बातचीत, 2019) लियाना किराना: मैं इंडोनेशिया से हूँ। तलाकशुदा हूँ। इरफान: मैं अफगानिस्तान का सैनिक। आपकी बातों में सुकून है। दृश्य ५: (काबुल, 2021) (तालिबान की वापसी, गोलियों की बौछार, इरफान घायल) इरफान (जेल में): चार महीने की जेल... पैर में गोलियां... फिर भी ज़िंदा हूँ, क्योंकि लियाना खत भेजती है, हिम्मत देती है। दृश्य ६: (भारत, फिर फ्रांस, तुर्की और ईरान) इरफान: अब ...

"वामनदेव की दिव्य लीला: समर्पण से सृष्टि तक"

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विष्णु के वामन अवतार पर एक भावपूर्ण निबंध शीर्षक: “वामनदेव: धर्म, प्रेम और समर्पण के अद्वितीय प्रतीक” सनातन धर्म में भगवान विष्णु के अनेक अवतारों का वर्णन है, जो समय-समय पर धर्म की रक्षा हेतु इस धरा पर प्रकट हुए। इन सभी अवतारों में वामन अवतार एक विशिष्ट और गूढ़ रहस्य लिए हुए है। यह अवतार त्रेतायुग के आरंभ में हुआ था, जब असुरराज बलि ने अपनी तपस्या और यज्ञ के बल पर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था और देवताओं तक को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया था। तब भगवान विष्णु ने एक बौने ब्राह्मण बालक का रूप लिया और बक्सर के सिद्धाश्रम (गंगा तट पर) में प्रकट हुए। वे राजा बलि के यज्ञ में पहुंचे और केवल तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि, जो स्वयं दानवीर था, यह सोचकर सहर्ष भूमि दान करने को तैयार हो गया। परंतु जब वामन ने अपना विराट रूप धारण किया, तब एक पग में उन्होंने पृथ्वी, दूसरे में स्वर्ग और तीसरे में पाताल लोक को नाप लिया। बलि के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे पाताल का अधिपति बनाया और वचन दिया कि वे स्वयं भी पाताल में रहेंगे। इसी पाताल निवास में एक कथा और जुड़ी है, जो कम प्रसिद्ध लेकि...

"धर्मपथ की विरासत: सेनना की कथा"

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निबंध: धर्म और अध्यात्म की सच्ची साधना – आत्मबोध और पूर्वजों से सीख धर्म और अध्यात्म हमारे जीवन की वह आधारशिला हैं, जिन पर मानवीय मूल्य, आचरण और उद्देश्य टिका होता है। परंतु आज के समय में, जब अध्यात्म भी एक व्यापार बनता जा रहा है और धर्म राजनीति का उपकरण बन रहा है, तब यह आवश्यक हो गया है कि हम इसके सच्चे स्वरूप को समझें। कई लोग धर्म और अध्यात्म को सीखने के लिए दूसरों के पास जाते हैं—वे स्वयं को तथाकथित गुरुओं, संस्थाओं, या बाजार के प्रवचनों में डुबो देते हैं। वहां से उन्हें शब्दों का आकर्षण तो मिल सकता है, पर आत्मिक संतुलन नहीं। धर्म और अध्यात्म जब व्यापार और कूटनीति के साथ जुड़ जाते हैं, तो उनका सार खो जाता है। ऐसे स्थानों पर भले ही भव्यता हो, पर सच्चाई की अनुपस्थिति रहती है। वास्तविक धर्म की शिक्षा हमें हमारे पूर्वजों के कर्मों में मिलती है। उनके जीवन की कहानियाँ, त्याग, परिश्रम और लोककल्याण की भावना ही सच्चे धर्म का प्रतिबिंब हैं। पूर्वजों ने धर्म को जीवन के व्यवहार में जिया, न कि केवल पूजा-पाठ या प्रदर्शन तक सीमित रखा। उनका हर निर्णय समाज की भलाई और प्रकृति के सम्मान के...

"सेननामायन: एक नाम, तीन युग"

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 प्रस्तुत है आपके अनुरोध के अनुसार एक गूढ़, रूपांतरणात्मक एक अंकी प्रतीकात्मक नाटक — जो "सेन" नाम की ऐतिहासिक, वैचारिक और सामाजिक यात्रा को दर्शाता है। --- नाटक शीर्षक: "सेन: एक नाम की तीन यात्राएँ" चरित्र: 1. राजा हेमांग सेन – सेन राजवंश का अंतिम महान राजा 2. अतुल सेन – एक क्रांतिकारी विचारक, तुला राशि का योद्धा 3. सेनवृत्ति (सेन कैबिन की आत्मा) – आधुनिक समय की सेवा और स्वाद की आत्मा 4. प्रज्ञाक्रान्ति – वर्तमान काल की नारी, जो तीनों रूपों से संवाद करती है 5. कालवृत्ति – समय की वाणी, जो तीनों कालखंडों को जोड़ती है --- दृश्य एक: अतीत का सिंहासन (12वीं शताब्दी) (मंच पर एक पुराना महल, क्षीण पड़ती हुई ध्वनि के बीच राजा हेमांग सेन खड़े हैं। एक युद्ध हार चुके हैं।) राजा हेमांग सेन (गंभीर स्वर में): हमने धर्म, शिक्षा और न्याय के दीप जलाए थे। परंतु हमारी तलवारें विचारों से हार गईं। शायद सेन नाम को फिर कोई अर्थ देना होगा — जो रक्त नहीं, चेतना से राज करे। (धीरे-धीरे धुआँ उठता है, मंच अंधेरे में डूब जाता है) --- दृश्य दो: विचारों की आग (20वीं शताब्दी) (प्रकाश में ...

20 अक्टूबर एक ऐतिहासिक दिन

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तो सुनो सखि, ये रहा तुम्हारे विचार का काव्यात्मक दृश्य रूप, जिसे हम "चेतना के दो पंख: सेन का स्वरूप" कह सकते हैं— --- चित्र का दृश्य विवरण: पृष्ठभूमि: एक पुरानी बंगाली हवेली की खुली बालकनी — जहाँ हल्की रोशनी में पुराना ज़माना साँस ले रहा है। दूर कहीं गंगा बह रही है, और शाम का सूरज आखिरी किरणें बिखेर रहा है। --- मुख्य पात्र – अतुल प्रसाद सेन: वे साफ़ सफ़ेद धोती और हल्का रेशमी चूड़ीदार कुर्ता पहने हैं। माथे पर हल्की बिंदी जैसा तिलक, जो ज्ञान और परंपरा का प्रतीक है। --- दाहिना हाथ (हथियार / सैनिक का प्रतीक): उनके हाथ में एक छोटा पर पारंपरिक बंगाली तलवार (तलवार या खुकरी जैसी) है — जो दिखने में सजावटी है लेकिन धारदार भी। हाथ में पकड़ी वह तलवार उनके वंश की सैनिक परंपरा और आत्मसम्मान का प्रतीक है। --- बायाँ हाथ (बावर्ची का प्रतीक): हाथ में एक पीतल का कलछुल, जिसमें थोड़ी सी मिष्टी दाल या खिचड़ी टपक रही है, जैसे वे अभी-अभी भोग बनाने के बाद उसे चख रहे हों। कलछुल के साथ उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान — जैसे वे स्वाद और भावना दोनों को संतुलित कर रहे हों। --- चेहरा और आँखें: आँखो...