"विनता और कद्रु: संयुक्त और एकल परिवार की सांस्कृतिक व्याख्या"
निबंध: संयुक्त परिवार बनाम एकल परिवार — कद्रु और विनता की दृष्टि से
प्राचीन भारतीय पौराणिक कथाएँ आज भी हमारे जीवन के अनेक पहलुओं को गहराई से प्रतिबिंबित करती हैं। इन्हीं में से दो प्रमुख स्त्रियाँ थीं — कद्रु और विनता। कद्रु, नागों की माता, उन स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो संयुक्त परिवार की संरचना को महत्व देती हैं। वहीं, विनता, गरुड़ और अरुण जैसे तेजस्वी पुत्रों की माता, एकल परिवार की शक्ति और स्वतंत्रता की प्रतीक हैं।
कद्रु ने अपने पति कश्यप ऋषि से सहस्त्र नाग पुत्रों का वरदान माँगा, जिससे वह एक विस्तृत और विशाल संयुक्त परिवार की अधिष्ठात्री बनीं। उन्होंने सदैव परिवार को जोड़ कर रखने का विचार रखा, परंतु अत्यधिक वासना और लालच ने उन्हें दुष्ट बना दिया। उनकी नकारात्मक प्रवृत्तियों के कारण उनके पुत्र — शेषनाग और वासुकी तक उनसे विमुख हो गए। यही दर्शाता है कि जब परिवार में वासनात्मक स्वार्थ और लालच आ जाता है, तो वह परिवार बंधन बनकर रह जाता है, प्रेम का स्थान अधिकार और ईर्ष्या ले लेती है।
वहीं दूसरी ओर, विनता ने अपने पति से केवल दो, परंतु शक्तिशाली और धर्मनिष्ठ पुत्रों का वरदान माँगा। उन्होंने परिवार की संख्या नहीं, बल्कि गुण और आदर्शों पर ध्यान दिया। यही कारण था कि उनके पुत्रों में गरुड़ जैसा महान योद्धा और भक्त जन्मा, जिसने स्वतंत्रता, सेवा और न्याय का मार्ग चुना।
आज के समाज में भी हम इसी द्वंद्व को देखते हैं। संयुक्त परिवार, जहाँ अधिक लोग होते हैं, वहाँ अक्सर सीमित सोच, परंपरा की आड़ में अत्याचार, जाति-पाति, धार्मिक संघर्ष और घर की चारदीवारी में पलता क्लेश देखा जाता है। बच्चे वही सीखते हैं जो वे अपने परिवार में देखते हैं — झगड़े, ईर्ष्या, ताना-बाना।
वहीं एकल परिवार, जहाँ सीमित सदस्य होते हैं, वहाँ स्वतंत्र सोच, खुला वातावरण और व्यक्तिगत विकास को प्राथमिकता दी जाती है। विनता की तरह आज भी कुछ स्त्रियाँ अपने बच्चों को आत्मनिर्भर, संवेदनशील और विवेकशील बनाने का प्रयास करती हैं।
इसलिए, आज के युग में हमें यह समझना आवश्यक है कि परिवार की संख्या से ज़्यादा महत्व उसके संस्कार और दृष्टिकोण का है। कद्रु और विनता की कथा केवल दो माताओं की कहानी नहीं, बल्कि दो जीवन दृष्टियों की अभिव्यक्ति है —
एक जो जोड़ती है, पर जकड़ती है।
दूसरी जो अलग करती है, पर उड़ने देती है।
निष्कर्षतः, हमें चाहिए कि चाहे हम संयुक्त परिवार में रहें या एकल परिवार में, कद्रु जैसी लालसा नहीं, बल्कि विनता जैसी दूरदृष्टि अपनाएं, ताकि हमारा समाज स्वतंत्र, समावेशी और समृद्ध बन सके।