"अलगाववाद: आत्मकेंद्रिकता और समाज पर उसका कुप्रभाव"
अलगाववाद और समाज पर उसका प्रभाव
अलगाववाद एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसमें व्यक्ति या समूह खुद को समाज और राष्ट्र से अलग कर लेते हैं। इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपनी आत्मकेंद्रिक सोच में इतना डूब जाता है कि वह समाज, राष्ट्र या सामूहिक जिम्मेदारियों से खुद को पृथक कर लेता है। यह मानसिकता न केवल समाज के लिए हानिकारक होती है, बल्कि व्यक्ति के लिए भी विनाशकारी साबित हो सकती है।
अलगाववादी लोगों की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वे दूसरों के प्रति अपने कर्तव्यों और दायित्वों को नजरअंदाज करते हैं। जब समाज या समुदाय की भलाई के लिए योगदान देने की बात आती है, तो वे चिंता में घिर जाते हैं कि लोग क्या कहेंगे। परन्तु जब बात उनकी अपनी जरूरतों की हो, तो वे यही अपेक्षा करते हैं कि बाकी लोग अपने सपनों, इच्छाओं और प्राथमिकताओं को त्याग कर उनके सपनों को पूरा करें। यह मानसिकता एकतरफा होती है, जहां वे स्वयं से जुड़ी हर चीज को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन दूसरों की आकांक्षाओं को महत्वहीन समझते हैं।
अलगाववाद की यह प्रवृत्ति न केवल सामाजिक संरचना को कमजोर करती है, बल्कि व्यक्तिगत जीवन को भी तहस-नहस कर सकती है। ऐसे लोग दूसरों के साथ मिलकर कार्य करने की जगह उन्हें नकारात्मक दिशा में धकेलते हैं। वे किसी के साथ जीवन जीने की बजाय लोगों को मानसिक और भावनात्मक रूप से हतोत्साहित करते हैं। यह भावनात्मक और मानसिक संघर्ष उन्हें भीतर से खोखला बना देता है, और उनकी खुद की जीवनशैली दूसरों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
धार्मिकता का लबादा ओढ़े हुए ऐसे अलगाववादी लोग, बाहर से भले ही बहुत धार्मिक या सभ्य दिखाई दें, परन्तु असल में उनकी सोच में सच्ची धार्मिकता का अभाव होता है। उनके लिए धार्मिकता केवल एक आडंबर होती है, जो वे समाज के सामने प्रस्तुत करते हैं, जबकि उनके भीतर का संसार अज्ञान और भय से भरा होता है। रीति-रिवाज और परंपराओं का पालन वे केवल इसलिए करते हैं क्योंकि उनके मन में एक अज्ञात भय होता है, न कि वास्तविक आस्था या विश्वास के कारण। इस प्रकार के अलगाववादी लोग न तो एकांत में खुश रह सकते हैं, न ही भीड़ में रहते हुए दूसरों को शांति से जीने दे सकते हैं। उनका अस्तित्व हर समय उथल-पुथल और असंतोष से भरा होता है।
इस तरह की मानसिकता का परिणाम यह होता है कि वे अपने आस-पास के लोगों को भी प्रभावित करते हैं। दूसरों की इच्छाओं और सपनों को कुचलते हुए, वे समाज में असंतोष और विखंडन की स्थिति उत्पन्न करते हैं। उनके विचार और क्रियाएं समाज को विभाजित करने वाली होती हैं, जहां हर व्यक्ति अपने निजी हितों की पूर्ति के लिए कार्य करता है, न कि सामूहिक भलाई के लिए।
समाज के स्वस्थ और समृद्ध विकास के लिए यह आवश्यक है कि लोग अलगाववादी मानसिकता से ऊपर उठें। आत्मकेंद्रिकता की जगह सामूहिक हित और सामाजिक जिम्मेदारी को महत्व दिया जाना चाहिए। जब हम समाज के हित में योगदान देते हैं, तभी हम सच्ची मानवता और धार्मिकता का पालन कर सकते हैं।