इर्द गिर्द घूमती है जिन्नात
मै अपराधिनी हु, मैं एक मानसिक रोगी हु,, मैं कायर हु,, इसलिए भीड़ से भाग रही हु,, मैं निर्बल हु,, इसलिए सुनी सुनाई बातों पर अमल नहीं कर रही हु,, जी आपकी बात सर्वथा उचित है जी।। मुझे आपके कथन से कोई दुःख नहीं है।। आपको जो बोलना है बोलते रहिए,,, अब तो विरोधी कि गालियां भी मनोरंजन जैसा लगने लगा है।।
भौतिक जगत कि हर निर्माण कार्य किसी न किसी कि स्वप्न ही तो है,, तो लोग यह कैसे मान लेते हैं कि पत्थर को पुजने से कोई लाभ नहीं,, जब शिद्दत से देखा गया दिवास्वप्न पुरा हो सकता है,, तो शिद्दत से किया गया भक्ति क्यों नहीं।। परन्तु जिस प्रकार सरकारी सम्पत्ति को व्यक्तिगत मतलब के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए,, वैसे ही तो पहले जमाने के ज्ञानी लोगों ने बोला है न कि बड़ी चित्र या मूर्ति भी व्यक्तिगत जीवन के लिए नहीं रखना चाहिए।। जिनकी मुर्ति या चित्र को तुम पुजते हो,, उनको शरीर पर भी अंकित करना या टेटु लगवाना गलत इसलिए है,, वे तुम्हारे कोई पति या पत्नी नहीं है।। या वह तुम्हारे घर के कोई सदस्य नहीं हैं,, वे सभी के लिए है।। क्योंकि राजनैतिक या भौगोलिक दृष्टि से देखा जाएं तो घर का झंडा लगाने के लिए भी तुम पुरे रास्ते को कवर नहीं कर सकते न।। झंडा लगवाने का अधिकार तो सबको हैं।।
कमजोर प्रतिद्वंद्वी कि तरफ तो विरोधी भी अपना लक्ष्य नहीं साधते हैं भाई।। तो फिर तुम किस खेत कि मुली हो,, भाई।। रोना धोना तो लगा रहेगा,, परन्तु अपने इरादों से मुंह नहीं मोड़ना है अब।। वह भी आएंगे तुम्हारे चरणों में,, बस धैर्य तो बनाएं रखो।। जिसने तुम्हें इतना दुत्कारा है,, उसे भी झुकना पड़ेगा अब।। तुम अपने विचारों में तो बल लाओ।। पुरा ब्रह्माण्ड तुम्हारे आगे नतमस्तक हो जाएगा।। शुण्य भी एक विचार है,,, महानतम विचार।।
हारा नहीं हु मै,, परन्तु अभी वह समय आया ही नहीं कि तुम मैरा विक्राल रुप देख लो।। घायल शेरनी दिन में तारे दिखा देती है,, जब तुम बेवजह उसकी बुराई गिनने जाओगे तो,, वह खामोश ही रहेगी,, परन्तु तुम गिन गिन कर थक जाओगे।।
अपने गिरेबान में झांक कर कोई कभी देखता ही नहीं,, नहीं तो विचारों को लेकर द्वंद्व कभी होता ही नहीं।। खोट तो हर किसी में है,, परन्तु हर किसी को नज़र आता ही नहीं।। हड्डी में दर्द और जीभ में तीखापन को लम्बे समय तक बर्दाश्त करना हर किसी कि वश कि बात नहीं है।।