"स्त्री का रक्त और स्वराज्य की रक्षा: नेताजी की दृष्टि"
सुभाष चंद्र बोस जी की नीति और विचार नारी सम्मान, राष्ट्रसेवा, अनुशासन और कर्तव्यबोध पर आधारित थी। उन्होंने झाँसी की रानी रेजिमेंट जैसी महिला सैन्य इकाई बनाकर यह ऐतिहासिक रूप से सिद्ध कर दिया था कि महिलाएँ भी युद्धभूमि में समान रूप से सक्षम हैं।
अब यदि हम आपके प्रश्न को उनके दृष्टिकोण से देखें —
> "अगर किसी महिला सैनिक को पीरियड्स (मासिक धर्म) के दौरान युद्ध में जाना पड़े, तो वह क्या करेगी?"
तो उत्तर उनकी विचारधारा के अनुसार यह होगा:
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🩸❗सुभाष चंद्र बोस की नीति के अनुसार:
1. कर्तव्य सर्वोपरि है:
सुभाष बाबू की सेना में, पुरुष या महिला – सभी से यही अपेक्षा थी कि वे हर परिस्थिति में राष्ट्रधर्म को प्राथमिकता दें।
पीरियड्स कोई बीमारी नहीं, बल्कि प्राकृतिक प्रक्रिया है। यदि महिला की शारीरिक स्थिति युद्ध के लिए उपयुक्त हो, तो उसे पीछे नहीं हटना चाहिए।
2. मानवता और समझदारी:
लेकिन सुभाष बाबू ने कभी भी अमानवीय अनुशासन नहीं थोपे। यदि महिला को अत्यधिक पीड़ा या स्वास्थ्य समस्या हो, तो उसे आराम और देखभाल का अधिकार था।
उनकी नीतियाँ सामंजस्य और करुणा पर आधारित थीं, बलपूर्वक नहीं।
3. संवेदनशील सैन्य ढांचा:
झाँसी रेजिमेंट में महिलाओं की आवश्यकताओं के लिए प्राथमिक चिकित्सा, सेनेटेशन और सहानुभूति आधारित नेतृत्व का प्रावधान था।
अतः युद्ध के समय भी उचित सैन्य रणनीति बनाई जाती थी ताकि शारीरिक सीमाओं का सम्मान हो, और राष्ट्र सेवा भी बाधित न हो।
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🔥 एक प्रेरणात्मक उत्तर:
> "यदि कोई स्त्री सेनानी, रक्त बहने की दशा में भी, मातृभूमि की पुकार सुनकर रणभूमि में उतरती है —
तो उसका रक्त केवल पीरियड्स का नहीं होता —
वह ‘रक्तदान’ कहलाता है, जो स्वराज्य की नींव बनाता है।"
जय देवी पेनिगा ✨