"रसोई की क्रांति: जटायु भक्त का बाग़ी भोज"





शीर्षक: "जटायु भक्त का बाग़ी भोज"

छप्पन गांवों की रसोइयाँ एक दिन गूंज उठीं — पर स्वाद से नहीं, दहशत से।
हर थाली में परोसे गए भोजन में धीरे-धीरे ज़हर घुलने लगा था — धीमा ज़हर, जो न पेट को मारता था, न दिल को... पर आत्मा को कुंद कर देता था।

यह कहानी है बाग़ी 'जटायु भक्त' की —
एक ऐसा किसान, एक ऐसा रसोइया, और एक ऐसा संत,
जिसे भगवान जटायु के दर्शन हुए थे
और जिसने डायबिटीज़ की बीमारी को भी अपनी तलवार बना लिया।


---

अफसाना

छप्पन गांवों में अजीब सी बात फैलने लगी थी –
बच्चों के चेहरे मुरझा रहे थे, बूढ़ों की यादें गुम हो रही थीं,
और जवानों को अब खेत से ज़्यादा मोबाइल का स्वाद अच्छा लगने लगा था।

बाग़ी को शक हुआ।
वह खुद डायबिटीज़ का शिकार था, लेकिन उसने कभी चीनी का मोह नहीं किया –
वह चखते ही पहचान लेता था कि खाने में क्या प्राकृतिक है, और क्या जहरीला।

एक दिन वह छुपकर सरकारी गाड़ियों का पीछा करते हुए
एक गुप्त गोदाम तक जा पहुंचा —
जहां से "पोषाहार", "खाद्य सुरक्षा", "मिड-डे मील" जैसी योजनाओं के नाम पर
जहरीली प्रोसेस्ड चीजें गांवों में भेजी जा रही थीं।

वह थरथराया — पर रुका नहीं।

"ये रसोइयाँ मेरी देवी हैं।
अगर कोई इन्हें अपवित्र करता है,
तो मेरा धर्म बनता है जंग छेड़ना,"
उसने कसम खाई।


---

बाग़ावत की रोटी

बाग़ी ने कुछ नहीं किया –
सिर्फ एक "सत्य थाली" बनाई।

इस थाली में

घर की सब्ज़ियाँ थीं,

जंगल का शहद था,

गेहूं-चावल में कोई रासायनिक तत्व नहीं था,

और साथ में एक पत्र था —
"जो खाओगे, वही बनोगे।
अब चुनाव तुम्हारा है —
खाद्य या ज़हर?"


ये थाली सोशल मीडिया की नहीं, जन-मन की क्रांति बन गई।


---

अंतिम लड़ाई

सरकार ने बाग़ी को पागल कहा,
किसानों को उकसाने वाला कहा,
लेकिन बाग़ी तो जटायु भक्त था।

जिसने अपने रक्त से मिट्टी सींची थी,
वह हार मानने वाला नहीं था।

"मैं मर जाऊंगा, पर
छप्पन गांवों की रसोई को फिर से
माँ अन्नपूर्णा की पूजा-स्थली बनाकर ही दम लूंगा,"
उसने कहा।

और फिर...

रसोइयों में लौटीं सिलबट्टियाँ।
लौटीं चूल्हों की सौंधी गंध।
लौटे वो स्वाद,
जो कभी दादी के हाथों में बसा करते थे।


---

जटायु भक्त अमर हो गया।

वह कभी भी टीवी पर नहीं आया।
कोई उसे प्रधानमंत्री नहीं बना सका।
लेकिन छप्पन गांवों की हर लड़की जब
साफ़ खाना बनाती है,
हर लड़का जब पेड़ लगाता है,
हर मां जब प्लास्टिक की थैली छोड़कर सूप में साग रखती है,
तो वो कहते हैं —
"बाग़ी लौटा है..."

और कोई धीरे से फुसफुसाता है —
"जय जटायु भक्त..."



 
🌾 जय थैरोसिरा स्वतंत्रिका
🌿 जय देवी पेनिगा
🌟 जय निक्सोफ्रा


Popular posts from this blog

"अलगाववाद: आत्मकेंद्रिकता और समाज पर उसका कुप्रभाव"

राजसिक श्रेणी कि अठावन महान क्रान्तिकन्याओ कि विनियोग एवं आह्वान मन्त्रों के साथ साथ स्तोत्र भी

इर्द गिर्द घूमती है जिन्नात