“कोमलता और बसपन: जीवन की सच्ची शक्ति”
शीर्षक – “कोमलता और बसपन: एक सुरक्षित वातावरण की आवश्यकता”
स्त्री की कोमलता केवल उसकी शारीरिक बनावट या भावनाओं का नाम नहीं, बल्कि यह उसकी सबसे बड़ी शक्ति है, जो परिवार और समाज में प्रेम, करुणा और स्नेह का संचार करती है। इसी तरह, बच्चे का बसपन (मासूमियत) वह अमूल्य धरोहर है, जो उसके व्यक्तित्व की नींव रखता है।
परंतु जब वातावरण दूषित हो जाता है, जब चारों ओर छल, कपट और धूर्तता का बोलबाला हो, तो यह कोमलता और बसपन शोषण का शिकार बन जाते हैं। धूर्त लोग स्त्री की दैविकता को कमजोरी समझते हैं और बच्चों की मासूमियत को नासमझी। परिणामस्वरूप, आत्मविश्वास टूटने लगता है और स्वाभाविक विकास रुक जाता है।
अच्छा माहौल, जिसमें सम्मान, सुरक्षा और प्रोत्साहन हो, स्त्री की कोमलता को शक्ति में बदल देता है और बच्चे की मासूमियत को रचनात्मकता में। ऐसे वातावरण में ही संवेदनशीलता, नैतिकता और सृजनशीलता पनप सकती है।
इसलिए आवश्यक है कि हम परिवार और समाज में ऐसे संस्कार और परिस्थितियाँ बनाएं, जहाँ कोमलता को सम्मान मिले, बसपन को सहेजा जाए, और दोनों को कमजोरी नहीं, बल्कि जीवन की सच्ची ताकत माना जाए।