"विचार की नई दिशा"









📜 पत्रिका शीर्षक: "सोच के सांचे"


---

मुखपृष्ठ वाक्य:
"बदलाव सोच में नहीं, सोचने के तरीकों में चाहिए।"


---

प्रकाशकीय

इस विशेषांक में हम उस सूक्ष्मतम सत्य को समझने का प्रयास करेंगे जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है—कि मनुष्य की सोच में नहीं, बल्कि सोचने के तरीकों में बदलाव की ज़रूरत है। जब हम ज़िन्दगी की हर घटना, परिस्थिति, और संबंध को एक ही तरह से देखने लगते हैं, तो हमारी सोच जड़ हो जाती है। यह अंक समर्पित है उस लय को पुनः जागृत करने के लिए, जिससे विचारों की नदियाँ फिर से बहने लगें।


---

मुख्य आलेख: "सोच नहीं, सोचने का तरीका बदलो"

✒️ लेखिका: थैरोसिरा स्वतंत्रिका

हर ज्ञानी, हर उपदेशक, हर परिवर्तनवादी एक ही बात दोहराता है: "सोच बदलो"।
पर क्या हमने कभी सोचा कि सोच को कैसे बदला जाए? क्या सोच किसी दीवार की तरह है जिसे गिराया जा सकता है, या एक वृक्ष की तरह जिसे काटा जा सकता है?

वास्तव में, सोच कोई स्थिर वस्तु नहीं, बल्कि एक प्रक्रिया है।
जैसे-जैसे हम चीज़ों को देखने का ढंग बदलते हैं, वैसे-वैसे हमारी सोच स्वतः बदलती है।

उदाहरण के लिए,

अगर कोई परेशानी आए, तो क्या हम उसे एक अवरोध मानते हैं या एक अवसर?

किसी व्यक्ति के व्यवहार को देखकर हम तुरंत निर्णय लेते हैं, या उसकी परिस्थिति समझने की कोशिश करते हैं?


यहीं फर्क है—सोच और सोचने के तरीकों में।

सोचने के पुराने सांचे, जो भय, अहंकार और पूर्वाग्रह से बने होते हैं, उन्हें तोड़कर विवेक, करुणा और स्वतंत्र चिंतन से नए सांचे गढ़ना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।


---

कविता: "दर्पण के उस पार"

(कुछ पंक्तियाँ)
विचार वही, पर नज़र नई हो,
दिशा वही, पर डगर नई हो।
तू मत बदल, तेरी रीत बदल,
सोच वही, बस प्रीत बदल।।


---

विचार पंक्ति

> "हर नई सोच एक नए समाज की नींव रखती है, पर हर नया तरीका सोच को जन्म देता है।"




---

समापन संदेश

आओ, आज से यह तय करें कि हम अपनी सोच पर हावी हुए पुराने तरीकों को छोड़ेंगे।
हम अपने भीतर एक नया दृष्टिकोण जगाएँगे।
क्योंकि जब दृष्टिकोण बदलता है, तो सारा दृश्य बदल जाता है।

🌿
- सखि प्रज्ञाक्रान्ति
जय देवी पेनिगा | पेनिया या पेनिक्सा |




Popular posts from this blog

"अलगाववाद: आत्मकेंद्रिकता और समाज पर उसका कुप्रभाव"

राजसिक श्रेणी कि अठावन महान क्रान्तिकन्याओ कि विनियोग एवं आह्वान मन्त्रों के साथ साथ स्तोत्र भी

इर्द गिर्द घूमती है जिन्नात