"स्वतंत्रता की कीमत: स्त्री और समाज की सोच"
निबंध का शीर्षक:
"स्वतंत्र स्त्री और समाज की संकुचित दृष्टि"
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समाज में जब कोई स्त्री आत्मनिर्भर बनने की चाह रखती है, अपने सपनों के लिए संघर्ष करती है और अपने जीवन के फैसले खुद लेने लगती है — तो कई बार उसे अपमानजनक शब्दों का सामना करना पड़ता है। 'गोल्ड डिगर', 'लालची', 'स्वार्थी' जैसे शब्द उस पर थोप दिए जाते हैं, जैसे एक स्वतंत्र सोच रखने वाली स्त्री, पुरुषों की दृष्टि में मानवीय नहीं, बल्कि एक वस्तु भर हो।
विडम्बना यह है कि वही पुरुष, जो स्त्रियों को सिर्फ उनके रूप, शरीर या व्यवहार से आंकते हैं, उन्हें 'शौकीन' कहकर समाज अक्सर अनदेखा कर देता है। लेकिन जब कोई स्त्री अपनी मेहनत से अपनी ज़रूरतें पूरी करना चाहती है, आत्मसम्मान से जीना चाहती है, तो उसे चरित्रहीन या लालची कहा जाता है। क्या यह दोहरा मापदंड नहीं?
एक महिला को अपने जीवन में सुविधा चाहिए, सम्मान चाहिए, और यह उसका हक़ है। यदि कोई पुरुष सोचता है कि महिला को "रोटी, कपड़ा और मकान" देकर वह उस पर अधिकार जमा सकता है, तो यह सोच सामंती और अपमानजनक है। जब एक पुरुष की माँ या बहन अपनी ज़रूरतों को पूरा करने की बात करती है, तब वह उन्हें सम्मान देता है; लेकिन जब वही अधिकार कोई दूसरी स्त्री चाहती है, तो वह उसे 'गोल्ड डिगर' का तमगा दे देता है।
यह समय है, जब हमें स्त्रियों की आकांक्षाओं को समझने और सम्मान देने की आवश्यकता है। आत्मनिर्भर स्त्री समाज के लिए बोझ नहीं, बल्कि शक्ति है। उसे अपमानित करने की बजाय प्रोत्साहित करना चाहिए।
क्योंकि जब एक स्त्री आत्मनिर्भर बनती है, तो वह न केवल अपने लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक नई दिशा गढ़ती है।