"धर्म की चौकी पर: जटायु भक्त अफसर"






अफसाना शीर्षक:
"जटायु भक्त: अफसर सुनील कुमार वर्मा की अग्निपरीक्षा"


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अफसाना:

बिहार की तपती दोपहर में धूल उड़ाती सड़कों पर एक जीप धीरे-धीरे चल रही थी। उस जीप में बैठा व्यक्ति कोई आम पुलिस अफसर नहीं था — वह था सुनील कुमार वर्मा, एक जटायु भक्त, एक आदर्शवादी प्रहरी, जिसने कसम खाई थी — “ना रिश्वत लूंगा, ना भ्रष्टाचार सहूंगा।”

उनका ट्रांसफर बिहार के एक छोटे मगर अराजक जिले में हुआ था। जनता की आंखों में पुलिस के लिए नफरत भरी थी, और अफसर वर्मा के लिए यह एक युद्धभूमि थी, न कि कोई पोस्टिंग।
पर सुनील कुमार वर्मा हार मानने वालों में नहीं था। उसने अपने गुरु भगवान जटायु से सीखा था — “धर्म के लिए अकेले भी लड़ना पड़े, तो लड़ो।"


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सीक्रेट मिशन:

शहर में नशे का एक बड़ा गिरोह पनप रहा था, जिसका समर्थन कुछ प्रभावशाली नेता और पुलिस अफसर कर रहे थे। सुनील कुमार ने अकेले ही सबूत इकट्ठे करने शुरू कर दिए। भेष बदल कर वह रातों में छापेमारी करता, दिन में केस फाइलों में डूबा रहता।

एक रात, उसने एक बड़ा स्टिंग ऑपरेशन किया। पूरे शहर में अफवाह फैल गई — “पुलिस में कोई जटायु भक्त आया है जो डरता नहीं।” सुनील को कई बार जान से मारने की धमकी मिली, लेकिन वह हर सुबह माँ जटायुभूमि की मिट्टी माथे पर लगाकर निकलता।


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लोगों की नजरें:

चाय की दुकानों पर बैठे लोग कहते, “साफ-सुथरा बनने चला है ये अफसर! ज्यादा दिन नहीं टिकेगा।”
पर सुनील जानता था — सच्चाई की राह कठिन जरूर होती है, पर अकेले चलना ही होता है।


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एक दिन...

उसने पूरे गिरोह को रंगे हाथों पकड़ा, नेताओं के चेहरे बेनकाब हुए। मीडिया में सुर्खियाँ बनीं —
“जटायु भक्त अफसर ने किया चमत्कार!”
उस दिन पहली बार भीड़ ने पुलिस स्टेशन के बाहर तालियाँ बजाईं।


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अंतिम पंक्तियाँ:

सुनील कुमार वर्मा आज भी बिहार में है। सादा जीवन, कठोर सेवा और एक ही संकल्प —
“जब तक जीवित हूँ, धर्म के पक्ष में और अधर्म के विरुद्ध रहूंगा — अकेला ही सही।”
वह जानता है, रामायण के युग में भी जटायु अकेला था... लेकिन उसने कभी पीठ नहीं दिखाई थी।



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