जटायु का चरित्र








📖 अध्याय 1: जटायु का जन्म और परिचय – धर्म का पंखधारी प्रहरी

भारत की पवित्र धरती पर जहाँ देव, ऋषि और वीर योद्धाओं ने अवतरण किया, वहीं एक ऐसा अमर पंखधारी पात्र भी हुआ जिसने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। वह थे – पक्षीराज जटायु।


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🪶 जन्म और वंश परंपरा

जटायु का जन्म एक दिव्य पक्षी वंश में हुआ। वे अरुण के पुत्र थे।
अरुण कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे — वे भगवान सूर्यदेव के सारथी थे, और गरुड़ के बड़े भाई भी। इस प्रकार, जटायु गरुड़ के भतीजे हुए।

उनकी माता का नाम "श्येनी" था, न कि शकुनि — जैसा कि कई बाद के स्रोतों में भूलवश लिखा गया।

👉 वंश क्रम:
कश्यप ऋषि + विनता → गरुड़ व अरुण
अरुण + श्येनी → जटायु और संपाती

जटायु के बड़े भाई का नाम संपाती था, जो भी एक शक्तिशाली पंखधारी योद्धा थे।


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👑 दशरथ के मित्र और राम के रक्षक

जटायु केवल पक्षी नहीं थे — वे राजा दशरथ के घनिष्ठ मित्र भी थे।
इसी मित्रता के नाते उन्होंने वनवास काल में राम, सीता और लक्ष्मण की सहायता की।


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🌿 धर्म के प्रहरी

जटायु दंडकारण्य वन के रक्षक थे। वे केवल उड़ने वाले जीव नहीं, बल्कि एक सजग योद्धा और धर्मात्मा भी थे।

उन्होंने नारी की मर्यादा और असुरों के अत्याचार के विरुद्ध जीवनभर संघर्ष किया।

जब रावण सीता माता का अपहरण कर उन्हें लेकर जा रहा था, तब वृद्ध अवस्था में भी जटायु ने अकेले रावण से टक्कर ली।



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🕊️ जटायु के गुण

नारी सम्मान के रक्षक

धर्म और न्याय के सजग प्रहरी

साहस और बलिदान के प्रतीक

भगवान राम के सच्चे भक्त



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✨ समापन

जटायु का जीवन यह सिखाता है कि धर्म की रक्षा के लिए आयु नहीं, भावना महत्वपूर्ण होती है।
उनका वीर बलिदान यह सिद्ध करता है कि केवल मानव ही नहीं, प्रकृति के प्राणी भी धर्म के लिए प्राण अर्पित कर सकते हैं।


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