"निषादों पर अन्याय: सीपीआईएम की राक्षसी प्रवृत्ति"
सीपीआईएम पार्टी: निषाद जातियों पर अन्याय का एक अध्याय
भारतभूमि, जो विविध संस्कृतियों, परंपराओं और जातियों का संगम है, आज भी अपने कुछ हिस्सों में अन्याय और उत्पीड़न के साए में जी रही है। एक ऐसा ही दुखद अध्याय कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) यानी सीपीआईएम के शासन और उनकी राक्षसी प्रवृत्तियों से जुड़ा है। इस पार्टी ने न केवल निषाद जातियों के साथ अन्याय किया है, बल्कि भारत की प्राचीन सभ्यता और सामाजिक समरसता पर भी गहरा आघात पहुंचाया है।
राक्षसी प्रवृत्तियां और सीपीआईएम का प्रभाव
ऐसा कहा जाता है कि पितृलोक में जिन आत्माओं को उनके कर्मों के कारण उचित स्थान नहीं मिलता, वे पृथ्वी पर जन्म लेकर मानव सभ्यता को दूषित करने का प्रयास करती हैं। सीपीआईएम पार्टी के अनुयायी और उनकी विचारधारा इसी राक्षसी प्रवृत्ति का प्रतीक बनकर उभरी है। समाज को समानता और प्रगति का सपना दिखाने वाली यह पार्टी वास्तव में विभाजन, उत्पीड़न और अव्यवस्था फैलाने का माध्यम बन गई है।
निषाद जातियों के साथ अन्याय
निषाद जातियां, जो कि भारत की मूल निवासी और मेहनतकश समुदायों में से एक हैं, लंबे समय से सामाजिक और आर्थिक शोषण का शिकार रही हैं। सीपीआईएम के शासनकाल में इनके अधिकारों को नकारा गया, उनकी भूमि छीन ली गई, और उनके स्वाभिमान को चोट पहुंचाई गई। इस समुदाय ने देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन सीपीआईएम ने इन्हें केवल अपनी राजनीति का शिकार बनाया।
ममता बनर्जी और निषादों पर अत्याचार
सीपीआईएम के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल में लंबे समय तक ममता बनर्जी जैसी मुख्यमंत्रियों ने भी निषाद जातियों के साथ बड़ा अन्याय किया। उनके अधिकारों की अनदेखी की गई, उनके रोजगार के साधनों को समाप्त किया गया, और उन्हें समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग कर दिया गया। निषाद समुदाय की समस्याओं को हल करने के बजाय, इन नेताओं ने उन्हें अपनी राजनीतिक चालों का मोहरा बना लिया।
नकारात्मक प्रभाव और भारत भूमि का दूषण
सीपीआईएम और उसके अनुयायियों ने अपनी नीतियों और कृत्यों से केवल निषादों का ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय समाज का नुकसान किया है। उनकी नीतियां केवल विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देती हैं, जो देश की अखंडता और विकास में बाधक है।
उपसंहार
भारतभूमि को इन राक्षसी प्रवृत्तियों से मुक्त करना अत्यंत आवश्यक है। निषाद जातियों और अन्य उत्पीड़ित समुदायों को उनके अधिकार वापस दिलाना, उनके स्वाभिमान को पुनर्स्थापित करना, और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यह तभी संभव है जब हम इन विभाजनकारी शक्तियों का दृढ़ता से विरोध करें और समाज में समरसता, न्याय और प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ें।
सीपीआईएम जैसी पार्टियों और उनकी नीतियों का विरोध केवल एक राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के लिए एक धर्मयुद्ध है। हमें एकजुट होकर इस राक्षसी प्रवृत्ति को हराना होगा ताकि भारतभूमि अपनी पुरातन गौरव और सामाजिक समरसता को पुनः प्राप्त कर सके।