"सूरज के अनुयायी: शम्सियाह का खोया हुआ संसार"



शम्सियाह: सूर्य-पूजकों का संघर्ष

शम्सियाह, सूर्य-पूजकों का एक प्राचीन संप्रदाय, उत्तरी मेसोपोटामिया के मार्डिन और तुर अब्दिन क्षेत्र में स्थापित था। यह समुदाय अपनी परंपराओं और विश्वासों के साथ मेसोपोटामिया की बुतपरस्त विरासत का अंतिम प्रतिनिधि था। लेकिन समय की कठोरता और बाहरी दबावों ने इस शांतिप्रिय और अनूठे समुदाय को संघर्ष और विलुप्ति की राह पर धकेल दिया।


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आरंभ: सूर्य-पूजा की परंपरा

शम्सियाह की धार्मिक परंपराएँ मेसोपोटामिया के सूर्य देवता शमाश (सुमेरियन में उटू) की पूजा पर आधारित थीं। वे सूर्य को न केवल प्रकाश और जीवन का स्रोत मानते थे, बल्कि इसे न्याय और सच्चाई का प्रतीक भी मानते थे। उनकी प्रार्थनाएँ सूर्योदय और सूर्यास्त के समय होती थीं, और वे अपने मृतकों के साथ सोने-चांदी के सिक्के दफनाते थे, मानो उनकी आत्मा को "सूर्य के राज्य" तक ले जाने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हों।

लेकिन जैसे-जैसे ईसाई धर्म और इस्लाम ने क्षेत्र में अपनी जड़ें जमाईं, शम्सियाह का यह अनूठा विश्वास धीरे-धीरे बाहरी धार्मिक और राजनीतिक दबावों के घेरे में आ गया।


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ओटोमन साम्राज्य का दबाव

17वीं शताब्दी में ओटोमन साम्राज्य ने अपने गैर-इस्लामी प्रजा पर भारी दबाव डाला। "किताब के लोग" (ईसाई और यहूदी) को कुछ हद तक सहिष्णुता दी गई, लेकिन बुतपरस्त समुदायों को धर्मांतरण, निर्वासन, या मृत्यु का विकल्प दिया गया।

जब सुल्तान मुराद IV ने 1638 में मार्डिन का दौरा किया, तो शम्सियाह के नेताओं ने खुद को "किताब के लोग" मानने से इनकार कर दिया। इस स्पष्टता ने उन्हें साम्राज्य के कोप का पात्र बना दिया।
सीरियाई ऑर्थोडॉक्स चर्च के कुलपति इग्नाटियस हिदायत अल्लाह ने हस्तक्षेप किया और शम्सियाह को बपतिस्मा देकर नाममात्र का ईसाई बना दिया।
हालाँकि, यह धर्मांतरण बाहरी दुनिया के लिए मात्र एक दिखावा था। गुप्त सभाओं में शम्सियाह अपनी पुरानी परंपराओं और पूजा को जारी रखते थे।


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संघर्ष और अलगाव

शम्सियाह को हमेशा ही "अलग" समझा गया।

1. धार्मिक अलगाव:

ईसाईयों और मुसलमानों के बीच, शम्सियाह को अर्ध-ईसाई और बुतपरस्त माना जाता था।

चर्च में उनकी उपस्थिति संदेह और अपमान का कारण बनती थी।



2. सामाजिक अलगाव:

मार्डिन में उनका अलग क्वार्टर और कब्रिस्तान था।

वे दूसरे धार्मिक समुदायों के साथ विवाह नहीं करते थे।



3. आर्थिक संघर्ष:

ओटोमन साम्राज्य में उन्हें भारी करों का सामना करना पड़ता था।

उनका समुदाय गरीबी में जीता था, और उनकी संपत्ति अक्सर छीन ली जाती थी।





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विलुप्ति की ओर यात्रा

19वीं शताब्दी के अंत तक, शम्सियाह समुदाय सिकुड़कर कुछ सौ परिवारों तक सिमट गया।

बाहरी दबाव: मिशनरियों और स्थानीय शासकों ने उन पर धर्मांतरण का दबाव बढ़ा दिया।

आंतरिक संघर्ष: युवा पीढ़ियाँ पुराने विश्वासों को छोड़कर मुख्यधारा के धर्मों में शामिल हो रही थीं।

प्रथम विश्व युद्ध: इस संघर्ष के दौरान मार्डिन और इसके आसपास के कई समुदाय नष्ट हो गए। शम्सियाह का भाग्य भी इन्हीं संघर्षों में समाप्त हो गया।



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विरासत और धरोहर

आज, शम्सियाह समुदाय केवल इतिहास के पन्नों में जीवित है। उनके विश्वास, संघर्ष और समर्पण की कहानी मानव इतिहास में धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए संघर्ष का प्रतीक है।
मार्डिन में उनके द्वारा छोड़े गए वास्तुशिल्प निशान, जैसे सूरज की ओर मुख किए हुए दरवाजों के रूपांकन, उनकी विरासत के अंतिम प्रतीक हैं।

शम्सियाह की कहानी यह सिखाती है कि कैसे धार्मिक विविधता का अंत बाहरी दबावों और सामाजिक-राजनीतिक संघर्षों से हो सकता है, लेकिन उनकी स्मृति और परंपराएँ हमें सहिष्णुता और सांस्कृतिक सम्मान की आवश्यकता का पाठ पढ़ाती हैं।


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