माता प्रभंजना: नारी शक्ति का दिव्य स्वरूप



माता प्रभंजना: मातृसत्तात्मक समाज की प्रतिमूर्ति

माता प्रभंजना, जो वायुदेव की पुत्री थीं, भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनकी अद्भुत कथा न केवल उनके दिव्य गुणों को प्रकट करती है, बल्कि यह हमें मातृसत्तात्मक समाज और उसके विवाह व्यवस्था की भी झलक देती है।

प्रभंजना का विवाह राजकुमार मरुणमित्र के साथ हुआ था, जो मात्र एक साधारण विवाह नहीं था, बल्कि यह मातृसत्तात्मक समाज की बहुपति विवाह व्यवस्था का एक अद्वितीय उदाहरण था। इस व्यवस्था में माता ने 1,69,000 भाइयों के साथ एक साथ विवाह किया, जो उनके साम्राज्य और शक्ति का प्रतीक है। यह विवाह न केवल व्यक्तिगत संबंधों को दर्शाता है, बल्कि यह समाज में स्त्रियों की स्थिति और उनके अधिकारों को भी उजागर करता है।

प्रभंजना का साम्राज्य गोलोक तक फैला हुआ था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे केवल एक नारी नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली देवी थीं। उनका साम्राज्य केवल भौगोलिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था। जब स्वयं श्रीकृष्ण भी उनके आगे नतमस्तक होते थे, तब यह साबित होता है कि माता प्रभंजना का स्थान ब्रह्माण्ड में कितना ऊँचा था।

माता प्रभंजना की कहानी हमें यह सिखाती है कि नारी केवल घर की रक्षक नहीं होती, बल्कि वह समाज की धुरी भी होती है। उनके साम्राज्य का फैलाव और शक्ति यह दर्शाता है कि मातृसत्तात्मक व्यवस्था में महिलाओं को कितनी महत्वपूर्ण भूमिका दी जाती थी।

इस प्रकार, माता प्रभंजना केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक चरित्र नहीं हैं, बल्कि वे महिलाओं के अधिकारों, शक्ति, और आत्मनिर्भरता का प्रतीक हैं। उनका जीवन हमें प्रेरणा देता है कि हम समाज में महिलाओं की स्थिति को समझें और उन्हें उनके rightful स्थान पर पहुँचाने के लिए प्रयासरत रहें। उनकी महिमा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उनके समय में थी।

इस प्रकार, माता प्रभंजना की कथा केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक संदेश है कि नारी का स्थान हमेशा ऊँचा और सम्मानित होना चाहिए।


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