युद्धं देहि रुद्राणी रौद्रमुखी रुद्रायै नमः ॐ 🙏




मैं टुट चुकी हु,, हां मैं टुट चुकी हु।। सफ़र बहुत ही लम्बा है।। मैरे कौम कि लड़ाई,, मैरी गुरुमाता कि दी गई जिम्मेदारी,, पता नहीं अगला वारिस मैं किसको बनाकर जाऊं।। यह लड़ाई बड़ी ही मुश्किल है।। इस यात्रा का अंत ही नहीं है।। कब किसको त्यागना पड़े,, यहां किसी को नहीं पता ।। बस स्वयं पर भरोसा रखना होता है यहां।। इससे ज्यादा कुछ नहीं।। 

हार मानना मुझे स्वीकार नहीं,, जब तक जिंदा है हम। वैसे कमीने कुत्तों से मैरा दिल भरेगा ही कहा।। जो कायर कि भांति हवस का मजा लेना ही जिंदगी के सबसे बड़ी उपलब्धि समझते हैं।। 

मुर्ख जोश को पागलपंती ही समझते हैं।। हवसी एक औरत के भीतर संस्कृति रक्षा के लिए जुनुन को भी औरत कि कामवासना ही कहते हैं ।। शीतलता बहुत ही सुंदर होती है,, परन्तु शीतलता के साथ एडजस्ट करना कमजोर लोगों कि वश कि बात नहीं है।। 

थोड़ा बदल लो अपने आप को,, भुल जाओ,, कुछ देर के लिए अपनी आस पास मौजूद स्थूलता को,, कुछ देर अपनी सुक्ष्म शक्ति को अनुभव करो।। मन में कुछ भी आए,, बोल‌ देना भी कहा सही है।। जुबान को तो फिल्टर करनी ही पड़ेगी न,, आखिरकार मनुष्य है हम।। कोई जोम्बी तो नहीं न।। कभी कभार बदजुबानी लोगों कि औकात दिखाने के लिए क्रोधित न होकर भी गालियां देकर दिखावा करनी पड़ती है।। 

अपो दीपो भव,, या फिर कहें अपना बोझ खुद ही उठाओ,, या अपना मार्ग स्वयं चुनो।। अपनी लड़ाई स्वयं लड़ो।। बात तो एक ही है।। बस बोलने का तरीका अलग अलग है।। 

हर पुराने अध्याय के साथ हमारी मौत होती है,, जीवन का हर नया अध्याय नया जन्म है,, अब किसको लगता है कि पिछला जन्म याद नहीं या पुर्व जन्म या पुनर्जन्म होता ही नहीं।। बोलो अब मुझे।। 

तेरा प्यार ने मुझे थका दिया है।। पर अब भरोसा रहा नहीं दुबारा कि किसी को दिल दे बैठू,, सामने महायुद्ध है,, अपनी अस्तित्व को बचाने कि ।। सब हार बैठी हु तो जिंदगी से कैसा मोह अब।। दिल बहलाने कि दुबारा कोशिश न कर तू,, चला जा अपनी राह पर।। खंड खंड हो चुकी हु पहले ही मैं।। 


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