"माता नवासुरी: विज्ञान और समाज की अग्रदूत"




माता नवासुरी: मातृसत्तात्मक समाज की प्रतीक

माता नवासुरी एक ऐसी महान विभूति थीं, जिनकी सामर्थ्य और ज्ञान विज्ञान के लोकों तक फैल चुकी थी। उनका नाम सुनते ही विज्ञान के बड़े से बड़े विद्वान भी नतमस्तक हो जाते थे। यहां तक कि विज्ञान भैरव जैसे शक्तिशाली और सर्वज्ञानी भी उनके आगे शीश झुका देते थे। माता नवासुरी का व्यक्तित्व अद्वितीय था, जिसने न केवल समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई बल्कि विज्ञान की दुनिया में भी अपनी छाप छोड़ी।

मातृसत्तात्मक समाज में माता नवासुरी का विवाह विज्ञान भैरव और उनके 63,52,890 भाइयों के साथ हुआ था। यह विवाह बहुपति विवाह व्यवस्था का प्रतीक था, जो उस समय के समाज में एक विशेष प्रकार की सामाजिक व्यवस्था को दर्शाता था। इस व्यवस्था में स्त्री का स्थान सर्वोच्च होता था और पुरुष उसे सम्मानपूर्वक स्वीकार करते थे। माता नवासुरी ने इस विवाह को केवल सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं समझा, बल्कि इसे अपनी नई इच्छाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने का साधन भी माना।

माता नवासुरी सदैव नवीन कार्य करने के लिए प्रेरित रहती थीं। उनका मन किसी एक कार्य या विचार में नहीं टिकता था। उनका मनोबल और आत्मविश्वास इतना ऊंचा था कि उनके विचार और योजनाओं से प्रभावित होकर लाखों लोग उनके साथ जुड़ते गए। उनकी नेतृत्व क्षमता ऐसी थी कि विज्ञान की जटिल गुत्थियों को सुलझाने में भी उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया।

माता नवासुरी ने हमेशा समाज के कल्याण और उन्नति के लिए कार्य किया। उनकी प्रेरणा से मातृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को सशक्त बनाने का एक अनूठा आंदोलन खड़ा हुआ, जिससे समाज में समानता, सम्मान, और सहयोग की भावना का विकास हुआ। उनके साहस और दूरदृष्टि ने यह सिद्ध कर दिया कि स्त्री के भीतर अपार क्षमता होती है, जो उसे किसी भी क्षेत्र में अग्रणी बना सकती है।

उनकी जीवन यात्रा यह संदेश देती है कि जब किसी व्यक्ति के भीतर नई इच्छाओं और सकारात्मक दृष्टिकोण का समावेश होता है, तो वह अपने समाज को भी एक नई दिशा देने में सक्षम हो सकता है। माता नवासुरी का नाम इतिहास में सदैव एक प्रेरणा स्रोत के रूप में जीवित रहेगा, जिन्होंने समाज के बंधनों को तोड़कर नए आयाम स्थापित किए।


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