"त्रिधारा: चंद्रतुला की रानियाँ"
जय माता त्रिकुला! जय त्रिधारा धर्म!
सखि प्रज्ञाक्रान्ति,
अब आरंभ होती है वह दिव्य नाट्य-कथा—
“चंद्रतुला: त्रिरानियों का युग”
(एक माया सभ्यता आधारित नाटक, जहाँ प्रेम, युद्ध, और धर्म का संगम होता है)
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दृश्य 1: त्रिरक्षा नगरी – प्रेम और संतुलन का स्वर्ण काल
(राजा इरफान सिंहासन पर हैं, तीनों रानियाँ पास में बैठी हैं—चारों दिशाओं से स्त्रियाँ फूलों की माला और जल अर्पित कर रही हैं।)
लियाना किराना (धीमे स्वर में):
"हे नाथ, चंद्रकलाएं पूर्ण हैं, साधनाएं सिद्धि पर हैं… इस भूमि को अब चिरशांति प्राप्त है।"
जरीन बलोच (तेज स्वर में):
"परन्तु शांति की छाया में भी कभी-कभी अंधकार पलता है, राजन। सेनाओं को जागृत रखिए।"
लुना पाठक (रहस्यपूर्ण लहजे में):
"गुप्तचरों ने बताया है—पूर्व की ज्वालाओं में कोई जाग रहा है… कोई जो हमारी त्रिधारा को तोड़ना चाहता है।"
(राजा इरफान गंभीर हो जाते हैं)
"तो समय आ गया है देवियों, जब प्रेम के साथ युद्ध की ज्वाला भी जलानी होगी…"
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दृश्य 2: संकट की घोषणा – अग्निशक्ति का उदय
(एक पिघलते ज्वालामुखी के भीतर से एक योद्धा “अग्निशक्त” प्रकट होता है, जो त्रिधारा धर्म को जादू और पितृसत्ता से नष्ट करना चाहता है)
अग्निशक्त (अट्टहास करता है):
"स्त्रियाँ शासन करें? प्रेम और शांति से राज चले? मैं अग्निशक्त हूं—माया को आग में जलाकर, उसे फिर से पुरुषों का राज्य बनाऊंगा!"
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दृश्य 3: युद्ध की तैयारी
(तीनों रानियाँ अलग-अलग योजनाएं बनाती हैं)
लियाना किराना:
"हम हवन करेंगे, आकाशीय मंत्रों से रक्षा कवच बनाएंगे।"
लुना पाठक:
"मैं जंगलों की गुफाओं से अदृश्य योद्धाओं को बुला लाऊंगी।"
जरीन बलोच:
"मैं धनुर्धारी वीरांगनाओं की टुकड़ी तैयार करूंगी—प्रथम प्रहार हमारा होगा।"
राजा इरफान:
"मैं तुम्हारे साथ चलूंगा—not as a king, but as a soldier of love."
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दृश्य 4: महासंग्राम – चंद्रग्रहण की रात
(त्रिरानी सेना और अग्निशक्त की सेना में माया सभ्यता के पवित्र महाशिखर पर युद्ध होता है)
तीनों रानियाँ एक त्रिशूलाकार युद्ध नीति अपनाती हैं—तीनों दिशाओं से वार और बीच में इरफान।
(अग्निशक्त शक्तिशाली लेकिन स्त्रियों की एकता से भ्रमित)
अग्निशक्त (लड़खड़ाता हुआ):
"यह कैसे… प्रेम युद्ध जीत सकता है?"
लियाना (मंत्र उच्चारण करती हैं):
"प्रेम ही अग्नि को शांत करता है।"
जरीन (तीर चलाती हैं):
"धर्म कोई शक्ति नहीं, संवेदना है!"
लुना (उसके गले में ब्लेड डालती हैं):
"और स्त्रियाँ कोई डर नहीं, प्रतिशोध हैं!"
(अग्निशक्त पराजित होता है, त्रिधारा पुनः प्रवाहित होती है)
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दृश्य 5: शांति की पुनः स्थापना
(पूरी नगरी फिर से फूलों से सजी है। स्त्रियाँ नृत्य कर रही हैं। चंद्रमा की छांव में राजा इरफान और उनकी तीनों रानियाँ साथ बैठी हैं)
राजा इरफान:
"यह युद्ध केवल राज्य की रक्षा के लिए नहीं था,
यह तो प्रेम, नारी और धर्म की त्रिधारा के लिए था…
और जब तक यह तीन धाराएं साथ हैं—चंद्रतुला कभी नहीं डगमगाएगा।"
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(पर्दा गिरता है)
संगीत बजता है: “त्रिधारा की जय हो, रानियों की जय हो, मातृशक्ति अमर रहे।”
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