“When Friendship Challenged the Ego: A Tale of Two Souls”
अफ़साना: दो आत्माओं की मित्रता — नुन्द ऋषि और गुरुपिता धृतचंद्र
पहाड़ों की कोमल गोद में लिपटा हुआ एक पुराना क़स्बा था, जहाँ सुबह की धूप मानो दूध में घुली केसर की तरह फैली रहती। वहीं बचपन के दो साथी रहते थे—
नुन्द, एक व्यापारी का तेज-तर्रार पुत्र,
और
धृत, एक सैनिक का साहसी बेटा।
धृत वही आत्मा हैं, जो आज गुरुपिता धृतचंद्र के रूप में आपके जीवन में प्रकाश-स्तंभ बनी हुई है।
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🌿 बचपन की छाया में खिली मित्रता
दोनों मित्रों की प्रकृति एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थी।
नुन्द का मन व्यापार की तेजी और लोकप्रियता की चमक में रमा रहता।
धृत का मन शांति, सत्य और निष्ठा का साधक था— जैसे जन्म से ही भीतर कोई प्राचीन ऋषि सोया हुआ हो।
नुन्द अपनी क्षमताओं पर गर्व करता।
लोगों की भीड़ उसे देखने आती, उसकी वाणी की गूंज घाटियों तक फैल जाती।
धीरे-धीरे यह यश उसके भीतर घमंड का छोटा सा बीज बोने लगा।
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🌸 धृतचंद्र की चेतावनी
एक दिन दोनों उच्च पर्वत की चोटी पर बैठे थे।
हवा संन्यासियों की तरह शांत, और संसार नीचे बादलों से ढका हुआ।
धृत ने नुन्द का चेहरा गौर से देखा—
और पहली बार उसे अपने मित्र की आत्मा में हल्की-सी बेचैनी दिखी।
धृत बोला—
“मित्र, यश का रंग बड़ा छलिया होता है।
उसका स्वाद जितना मधुर लगता है, उतना ही भीतर अहंकार को जन्म देता है।
अगर तू स्वयं को ऊँचा समझेगा,
तो तेरी ख्याति भी किसी छोटे पहाड़ी गाँव की तरह सीमित रह जाएगी।”
नुन्द ने बात सुनी, पर भीतर ही भीतर मन बोला—
“मैं इतना प्रभावशाली हूँ… मुझे कौन रोक सकता है?”
धृत के अनुभव ने उसे भविष्य के ढलते सूरज की छाया दिखा दी थी,
पर नुन्द उस क्षितिज को नहीं देख पाया।
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🌄 समय के चक्र का फल
युग बदले।
जन्म बदले।
धर्म बदले।
लेकिन दोनों आत्माओं के कर्म-चिन्ह जस के तस रह गए।
नुन्द का यश आज भी है—
कश्मीर की धरती उसे शेख नूर-उद-दीन वली, नुन्द ऋषि के नाम से याद करती है।
उसकी भक्ति, उपदेश और सूफ़ी सरलता आज भी स्मृति में जीवित हैं,
परंतु उसका नाम… सिर्फ कश्मीर की सीमाओं के भीतर ही बंध कर रह गया।
धृत का कथन कैलाश के पत्थरों की तरह सत्य सिद्ध हुआ।
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🌙 दूसरी ओर — धृतचंद्र का मार्ग
धृतचंद्र की आत्मा, सदियों और जन्मों में,
⚔️ सैनिक की निष्ठा,
🕉️ योगी की शांति,
🌿 गुरु की करुणा,
🔥 तपस्वी की शक्ति,
इन सब रूपों से गुज़रते हुए,
आज गुरुपिता धृतचंद्र जी के रूप में
कहीं अधिक विस्तृत, कहीं अधिक वैश्विक प्रकाश बनकर उभरी।
उनकी शिक्षाएँ अब किसी एक घाटी या भूभाग की बंधन में नहीं—
बल्कि कई जन्मों के साधकों के लिए प्रकाश का स्रोत हैं।
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💠 अफ़साने का सार
कभी दो बालकों के रूप में शुरू हुई वह मित्रता
आज दो आध्यात्मिक ध्रुवों की कथा बन चुकी है—
एक जिसने यश को अपनाया और उसी सीमित भूभाग तक उसकी ख्याति रह गई।
दूसरा जिसने निष्ठा, विवेक और व्यापकता को अपनाया—
और जिसकी रोशनी कई जन्मों तक विस्तृत होती चली गई।
यही जीवन का सत्य है—
अहंकार सीमित करता है,
विवेक अनंत बनाता है।