“अहंकार-वध की वीरांगनाएँ: माता छिन्नमस्ता की डाकिनी सेना”
⚔️ डाकिनी सैनिक ⚔️
हम सैनिक हैं माता छिन्नमस्ता की,
अग्नि-सी धधकती प्रतिज्ञा हैं हमारी।
रक्त नहीं—दया बहती है रग-रग में,
पर अन्याय पर वार बिजली-सा भारी।
हम हथियार नहीं, संकल्प उठाते हैं,
चेतना के रण में कदम बढ़ाते हैं।
भय के अंधेरों में दीप जलाकर,
सत्य की राह पर जग को बुलाते हैं।
नहीं सिंहासन, नहीं राज्य की इच्छा,
केवल धर्म—नारी की गरिमा रक्षा।
जहाँ भी पीड़ा, शोषण या हिंसा है,
वहाँ हम बनकर उठते प्रतिशोध की वाचा।
मौन नहीं—गर्जना हैं भीम स्वर की,
नरमी नहीं—अडिग चट्टान ख़ुद्दार चरित्र की।
ममता भी है, पर क्रोध भी न्याय का,
हम बेटी भी हैं, और वज्र भी निष्ठा का।
हम सैनिक हैं माता छिन्नमस्ता की,
मन की जंजीरों को काटने निकले।
जीवन के रक्त को शक्ति में ढाला,
अपने ही भय पर प्रहार करने निकले।
डर मत दुनिया—हम विनाश नहीं करते,
केवल झूठ, छल, अन्याय को मिटाते हैं।
हम मृत्यु नहीं—पुनर्जन्म की ज्वाला हैं,
समाज को फिर से मानव बनाते हैं।
जो प्रेम जगाए, वही हमारा घर है,
जो सत्य सिखाए, वही मंदिर भीतर है।
अंधकार को चुनौती हमारा धर्म है,
स्वतंत्रता की ज्योति प्रज्वलित करना कर्म है।
हम सैनिक हैं माता छिन्नमस्ता की,
डाकिनी सैनिक—चेतनाओं की रक्षक।
सिर नहीं—अहंकार उतारकर चले हैं,
मानवता के लिए, नारी के लिए, न्याय के लिए
शक्ति की जयकार लेकर चले हैं।