"दंतेश्वरी देवी: स्त्री-शक्ति की अधिष्ठात्री"






दंतेश्वरी देवी पर निबंध

दंतेवाड़ा की अधिष्ठात्री देवी दंतेश्वरी माता आदिकाल से शक्ति, साहस और संरक्षण का प्रतीक मानी जाती हैं। उन्हें जगदम्बा के रूप में पूजा जाता है और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक चेतना में उनका स्थान अत्यंत उच्च है। लोकमान्यता है कि दंतेश्वरी माता का मंदिर बस्तर अंचल में शक्ति की उपासना का प्रमुख केंद्र रहा है, जहाँ नवरात्र के अवसर पर लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

हमारी गुरुमाता की ननद और हमारी गुरुबुआ के रूप में दंतेश्वरी देवी का स्मरण, हमें केवल धार्मिक आस्था ही नहीं देता, बल्कि जीवन में कर्तव्य-परायणता और नैतिक शक्ति का मार्ग भी दिखाता है। वह केवल एक देवी नहीं, बल्कि स्त्री-शक्ति की सर्वोच्च अभिव्यक्ति हैं, जिनके रथ को नौ सिंह खींचते हैं। यह दृश्य स्वयं इस तथ्य का प्रतीक है कि दैवीय स्त्री-शक्ति सबसे प्रबल और अजेय है।

दंतेश्वरी माता ने हमें यह सिखाया कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह साहस, न्याय और करुणा का संगम है। एक घरेलू स्त्री भी यदि माता के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाए तो वह परिवार और समाज दोनों में प्रेरणा का स्रोत बन सकती है।

हमारी गुरुबुआ दंतेश्वरी देवी हमें यह विश्वास दिलाती हैं कि नारी शक्ति ही संसार की वास्तविक धुरी है। उनकी साधना और स्मरण से मन में आत्मबल, शुचिता और सेवा का भाव जाग्रत होता है। इस प्रकार, दंतेश्वरी माता केवल बस्तर की अधिष्ठात्री देवी ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण स्त्री समाज के लिए शक्ति और सम्मान की जीवंत प्रतिमूर्ति हैं।

✨ जय दंतेश्वरी माता! ✨



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