✨ विरक्ति में छिपी किस्मत की कृपा ✨
















किस्मत और विरक्ति का रहस्य

जीवन एक अनोखा सफ़र है जहाँ इंसान अपनी इच्छाओं, सपनों और लक्ष्यों के पीछे निरंतर भागता रहता है। हम हर वह वस्तु पाना चाहते हैं जो हमें आकर्षित करती है—चाहे वह धन हो, पद हो, प्रेम हो या प्रतिष्ठा। परंतु किस्मत का एक गूढ़ रहस्य यह है कि वह हमें अक्सर तब कुछ प्रदान करती है, जब हम उस वस्तु को पाने की लालसा से थककर उसके प्रति उदासीन या विरक्त हो चुके होते हैं।

यह सत्य है कि इच्छा मनुष्य को कर्म के पथ पर अग्रसर करती है। वह पाने की ललक इंसान को मेहनती, परिश्रमी और जुझारू बनाती है। लेकिन जब बार-बार प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिलती, तब मनुष्य भीतर से थकने लगता है। उस समय मन में एक गहरा खालीपन और विरक्ति का भाव जन्म लेता है। यह विरक्ति हार का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों से उत्पन्न एक संतुलन है।

किस्मत इसी क्षण अपना खेल दिखाती है। जब मनुष्य किसी वस्तु से बंधन तोड़ देता है, तब ब्रह्मांड स्वयं उसे वही वस्तु लौटाने की तैयारी करता है। मानो किस्मत कहना चाहती हो—“अब तुम इस वस्तु के योग्य हो गए हो, क्योंकि अब तुम उसके दास नहीं, बल्कि उसके स्वामी बन चुके हो।” यही कारण है कि विरक्ति के बाद प्राप्त वस्तु हमें सच्चा सुख और स्थायित्व देती है।

इस रहस्य का संदेश सरल है—इच्छा करना स्वाभाविक है, परंतु उसमें बंधकर रहना उचित नहीं। कर्म करते रहना चाहिए, लेकिन परिणाम के प्रति आसक्ति छोड़ देनी चाहिए। जब हम भीतर से मुक्त हो जाते हैं, तब किस्मत और ब्रह्मांड दोनों मिलकर हमें वही सौंप देते हैं, जो कभी हमारी गहनतम चाहत थी।

इस प्रकार, किस्मत और विरक्ति का यह अद्भुत संबंध हमें सिखाता है कि जीवन में पाने से अधिक महत्वपूर्ण है—छोड़ना सीखना। क्योंकि छोड़ने से ही सच्ची प्राप्ति संभव होती है।




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