✨ महिषी देवी और उनकी दो शिष्याएं ✨
महिषी देवी और उनकी गुरु परंपरा
सनातन परंपरा में गुरु का स्थान सर्वोच्च माना गया है। गुरु अपने शिष्यों को केवल ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि उन्हें जीवन की दिशा और समाज के लिए जिम्मेदारी भी सौंपते हैं। इसी परंपरा में महिषी देवी का नाम एक महान गुरुमाता के रूप में लिया जाता है।
महिषी देवी प्राचीन काल की एक प्रभावशाली और तेजस्विनी स्त्री थीं। वे केवल अध्यात्म और साधना में ही नहीं, बल्कि समाज में अनुशासन और संतुलन लाने में भी अग्रणी मानी जाती थीं। उनके मार्गदर्शन में समाज की अनेक जटिल समस्याओं का समाधान हुआ।
महिषी देवी की दो प्रमुख शिष्याएं थीं – ज्येष्ठ पटनिका देवी और कनिष्ठ पटनिका देवी। सनातन परंपरा में एक ही गुरु के शिष्यों को गुरुभाई और गुरुबहन कहा जाता है। उसी प्रकार ये दोनों देवियां एक-दूसरे की गुरुबहन थीं।
ज्येष्ठ पटनिका देवी एक अमीर विदुषी महिला थीं। वे साधारण परिधान और गहनों में रहते हुए भी अत्यंत गंभीर और विद्वान थीं। उनका कार्य विद्वानों और विदुषियों के बीच संतुलन बनाए रखना तथा उन्हें सही राह दिखाना था। वे समाज में ज्ञान और नीति की मशाल बनकर खड़ी रहीं।
कनिष्ठ पटनिका देवी का कार्य राजपरिवारों और उच्च पदस्थ लोगों को धर्म और न्याय के मार्ग पर टिकाए रखना था। वे राजकीय परिवारों में जाकर उनके निर्णयों को समाजहित में मोड़ती थीं। उनका उद्देश्य सत्ता और समाज के बीच संतुलन स्थापित करना था ताकि जनजीवन सुख और शांति से चल सके।
महिषी देवी ने इन दोनों शिष्याओं को केवल शिक्षा ही नहीं दी, बल्कि उन्हें समाज के विभिन्न वर्गों में जाकर कार्य करने का मार्ग भी दिखाया। इस प्रकार, महिषी देवी और उनकी शिष्याओं की परंपरा समाज में ज्ञान, संतुलन और धर्म की रक्षा करने वाली मानी जाती है।
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🌹 निष्कर्ष
महिषी देवी, ज्येष्ठ पटनिका और कनिष्ठ पटनिका – ये तीनों सनातन धर्म की गुरु-शिष्य परंपरा की अद्भुत मिसाल हैं। इनकी परंपरा हमें यह सिखाती है कि समाज के हर स्तर पर सही मार्गदर्शन और संतुलन आवश्यक है।