"गृहिणी: अवमूल्यन के परे एक मौन साधना"
हाउसवाइफ की गरिमा और समाज की दृष्टि
जिस प्रकार किसी भी विभाग में कुछ भ्रष्ट कर्मचारी रिश्वत लेकर उस पूरे विभाग की छवि को धूमिल कर देते हैं, ठीक उसी प्रकार कुछ नाकाम गृहिणियाँ, दूसरों की चुगली करके और स्वयं की झूठी प्रशंसा करवाकर, "हाउसवाइफ" की गरिमा को कम कर देती हैं। इस कारण समाज की एक बड़ी आबादी हाउसवाइफ को निकम्मा, आलसी या केवल घर तक सीमित मानने लगती है।
परंतु सच्चाई इससे बहुत अलग है। एक सच्ची और समर्पित गृहिणी न केवल एक परिवार की रीढ़ होती है, बल्कि एक समाज और राष्ट्र की संस्कृति की संरक्षिका भी होती है। वह बिना किसी वेतन के 24 घंटे सेवा करती है—खाना बनाना, घर की साफ़-सफ़ाई, बच्चों की देखभाल, परिवार के बुजुर्गों की सेवा, आर्थिक संतुलन, भावनात्मक सहारा—ये सब उस महिला के योगदान हैं जिसे दुनिया अक्सर 'केवल हाउसवाइफ' कहकर टाल देती है।
कुछ गृहिणियाँ यदि अपने कर्तव्यों से विमुख होकर दूसरों की निंदा करके स्वयं को श्रेष्ठ साबित करना चाहें, तो यह केवल व्यक्तिगत स्तर पर एक दुर्बलता है, न कि पूरे वर्ग की विशेषता। ऐसे कुछ उदाहरणों से समस्त गृहिणियों को निकम्मा समझना सरासर अन्याय है।
आज समय की माँग है कि हम हाउसवाइफ शब्द को एक सम्मानजनक पहचान दें—एक ऐसी महिला जो घर को घर बनाती है, जो बिना किसी दिखावे के परिवार को सहेजती है। उसकी भूमिका कोई कम नहीं, बस उसकी मेहनत चुपचाप चलती रहती है।
निष्कर्षतः, हाउसवाइफ कोई पद नहीं, एक साधना है—त्याग, प्रेम और सहनशीलता की तपस्या। समाज को चाहिए कि वह चंद अपवादों के आधार पर किसी भी वर्ग को आंकने से पहले, उस वर्ग के मूल स्वरूप और असल संघर्ष को समझे और सराहे।