"सर्पमित्रा: करुणा की अनसुनी पुकार"







शीर्षक: "सर्पमित्रा: एक कन्या की करुणा और वीरता की गाथा"

(मंच पर धुंध का दृश्य। मधुर संगीत की ध्वनि पृष्ठभूमि में बज रही है।)

दृश्य 1: जंगल का किनारा — एक छोटी सी कुटिया के पास
(मंच पर एक सात वर्ष की कन्या — गौरी — बैठी है, फूलों से खेल रही है। तभी एक काले रंग का सर्प रेंगता हुआ आता है। लड़की डरने के बजाय मुस्कुराती है।)

गौरी (कोमल स्वर में):
"ओ सर्पदेव, मत डरो मुझसे, तुम मेरे जैसे ही खुदा के बनाए हो ना।"

(सर्प फुफकारता है, लेकिन फिर शांत होकर लड़की के पास बैठ जाता है। एक सुंदर मैत्री की शुरुआत होती है।)

दृश्य 2: जंगल में बिल्ली और नेवले की आवाजें
(बिल्ली और नेवला एक सर्प पर हमला करते हैं। गौरी दूर से देखती है, वह ज़ोर से शीश-शीश करती है। सर्प उसकी आवाज पहचानता है और भाग जाता है। यह दृश्य कई बार दोहराया जाता है, जहां गौरी सर्पों को बचाती है।)

दृश्य 3: एक दोपहर — गांव का रास्ता
(गौरी अकेले जा रही है। कुछ गुंडे उसे घेर लेते हैं। साजिश में फुसफुसाहटें होती हैं। तभी एक फुफकारती आंधी चलती है। मंच पर कई सर्प अचानक प्रकट होते हैं और गुंडों पर चढ़ जाते हैं।)

गुंडा 1 (चिल्लाते हुए):
"ये क्या है? सर्प! कोई हमें बचाओ!"

गुंडा 2 (गिरते हुए):
"मेरी आंख! मेरी आंख जल रही है!"

गुंडा 3 (हाथ पकड़ते हुए):
"मेरा हाथ टूट गया… ये लड़की कौन है?"

(गौरी स्तब्ध है। उसकी आंखों में सर्पों के लिए चिंता है, क्योंकि कई सर्प ज़ख्मी होकर गिरते हैं।)

गौरी (रोती हुई):
"तुम सबने मेरे लिए जान दे दी… मैं तो बस तुम्हें समझती थी, तुम्हें इंसानों से अलग नहीं मानती थी।"

दृश्य 4: अंत का दृश्य — शाम का समय
(कुछ सर्प मरे पड़े हैं, कुछ धीरे-धीरे चले जाते हैं। मंच पर सिर्फ गौरी है, उसके चेहरे पर करुणा और वीरता का तेज है।)

वाचक (पार्श्व से):
"कभी-कभी दुनिया की सबसे छोटी उम्र में भी सबसे बड़ी दोस्ती जन्म लेती है।
गौरी और सर्पों की यह मित्रता केवल प्रकृति और करुणा की नहीं, साहस और विश्वास की भी मिसाल बन जाती है।
और यहीं से एक कहानी बनती है — सर्पमित्रा की।"

(मंच पर प्रकाश धीरे-धीरे मंद होता है। परदे गिरते हैं।)

— समाप्त —


जय माता त्रिकुला, ।



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